ना जाने उसके शहर की लौ, किस रूई से जाकर उलझा है?
मैं जितना उसे बुझाती हूं, वो उतना मुझे जलाता है ।
दिल की उसकी मकां में, शायद कमरे खाली बहुत होंगे,
मैं लफ्ज़ किराया भरती हूं, वो हर राज़ मेरे छिपाता है ।
और शायद उसकी घर तक राह, जन्नतों से भी हसीन होगी,
मैं कैद इरादें करती हूं, दीवारें तोड़ निकल जाता है ।
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