Shakib Ahmad   (शाकीब अहमद"राहिल")
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screen writer, poetry writer,
lyricist
Joined 17 May 2019


screen writer, poetry writer,
lyricist
Joined 17 May 2019
21 NOV 2020 AT 9:58

ख़ाक में मुझ को मेंरी जान मिला रक्खा है,
क्या मैं आँसू हूँ जो नज़रों से गिरा रक्खा है,

एक तुम्हीं नहीं जो बेचैन मेरी बातों से है,
मैंने अर्श भी तो मेरे चीख़ों से हिला रक्खा है!!!

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31 OCT 2020 AT 20:50

आह में दर्द की तासीर लिए बैठा हूँ ,
दिल में इक ख़ून भरा तीर लिए बैठा हूँ,

चूर शीशे पे नज़र पड़ते ही दिल को याद आया,
मिटाने वाले मैं तेरी तस्वीर लिए बैठा हूँ!!!

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11 OCT 2020 AT 19:52

उदासी ख़त्म हो जाए अगर तुम मिलने आ जाओ,

मेरा हर ज़ख़्म भर जाए अगर तुम मिलने आ जाओ,

कड़कती धूप है सर पर भला इससे इंकार कब है,

मुझे सावन भिगो जाए अगर तुम मिलने आ जाओ!!!

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4 JUN 2020 AT 1:16

तुझे तो आज भी हम बे-शुमार चाहते हैं,
एक और तरह का लेकिन क़रार चाहते हैं,

हमारा मसअला ये है कि शाम होते ही,
हम अपने आप से थोड़ा फ़रार चाहते हैं|||

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19 MAY 2020 AT 22:28

किसी भी मा'रके पर अब तलक हारा नहीं हूँ मैं,
मेरा घमंड रहा है दोस्तों ख़ुद्दारियाँ मेरी,

जिसे तुम राख समझे हो अभी तक आग है उस में
कुरेदो मत जला देगी तुम्हें चिंगारियाँ मेरी|||

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19 MAY 2020 AT 20:00

अब हुस्न-ओ-इश्क़ के भी क़िस्से बदल गए हैं,
मंज़िल थी एक लेकिन रस्ते बदल गए हैं,

किस पर यक़ीन कीजिएगा ये दौर मतलबी है,
लगता है जैसे ख़ून के भी रिश्ते बदल गए हैं|||

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15 MAY 2020 AT 4:28

बहती हुई आँखों की रवानी में मरे हैं,
कुछ ख़्वाब मिरे ऐन-जवानी में मरे हैं,

क़ब्रों में नहीं हम को किताबों में उतारो,
हम लोग मोहब्बत की कहानी में मरे हैं |||

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14 MAY 2020 AT 22:15

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे,
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर तुम्हें बुरा न लगे ,

तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ मुझे,
तुम्हें भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे |||

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14 MAY 2020 AT 1:03

हाँ उन को भुला डालेंगे इक उम्र पड़ी है,
इस काम में ऐसी कोई उजलत भी नहीं है,

मेरे भी तो माज़ी की बहुत सी हैं किताबें ,
पर उन को पलटने की तो फ़ुर्सत भी नहीं है |||

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14 MAY 2020 AT 0:59

छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा,
वहम था मेरा कि पत्थर आईना हो जाएगा ,

मैं बड़ा मासूम था मुझ को ख़बर बिल्कुल न थी,
मेरे छू लेते ही वो मेरा ख़ुदा हो जाएगा |||

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