उल्लू कभी नहीं मानेगा वजूद रोशनी का,
उन्हें सिर्फ अंधेरे मे आँखें खोलनी है |
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ईक फूल खील रहा था, उस बाग की गोद मे उस दिन,
हवाये बगावत पर थी और आग को संभालना था मुझे |
तोड देता पिंजरा और उड आता परिंद उस शाख पर,
पैड मजबूर थे,, और पत्ते को बचाना था मुझे |
गलत समझा गया वक्त की साजिशो मे मुझे,,
समझमे आ जाऊ तो छोड़ देना मुझे |
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उफान पर हो चाहे समन्दर कितना भी, कुद जाना चाहिए,
यु किनारे पे बैठकर दरिया पार नही होता,
मैं जानता हूँ तेरे हाथो मे है जो खंजर, ज्यादा तेज है
मगर कायरो से सिने पे वार नही होता |-
मैंने कभी किसी रूठे को नही मनाया,,,
क्योकी,,
मैंने कभी आसमान मे घर नही बनाया,,-
सितारे बहोत है टिमटिमाने को,
जमाना जिद पर है आसमाँ को चाँद के साथ देखे,
रोशनी अगर पैड जलाने से है, तो बुझादो आग को,
पैड को जमीँ से निकलने मे जमाना लगे |-
जो मेरा है वो मिला नही है,
जो मिला है वो मेरा नही है,
ले तो आये हैं ढुंढकर दोस्त मेरे,
उस शख्स सी शक्ल का कोई,
ईस लिबास मे मैने देखा नही उसे कभी,
ईस लिबास का शख्स मेरा नही है,
हम गुजर चुके है लबो की हर हरकत से,
उसके लबो की लज्जत जानता हूँ,
आग ने ही हवा दी थी आग को,
बदन तक की खुशबू पहचानता हूँ,
जो लड लेता था जमाने से ख़ातिर मेरे,
उसे ढूंढने की हिदायत थी हमारी,
ईसके मुंह मे तो जूबाँ ही नही है,
ये शख्स मेरा नही है,, ये शख्स मेरा नही |-
पर्दे मे था शहर आजतक,
मेरी आँखों से बादल हटे है,
घर सझाने मे लगी है पैडो की साँसे,
उसके ईस शौख मे,, ना जाने
कितने पैड कटे है |-
अब वो वफादारी की बाते नही कर सकता,
किनारे से लौटने वाला दरिया गलत नही कह सकता |-
मैंने अँबर पे उड़ते परिंद को
जमीँ पर आते देखा है,,
तूम अगर उंचाई पर हो तो,
मैं उसी जमीँ पर बैठा हूँ |-