ख़्वाब चाय जैसे कड़क होने चाहिए
जिनकी तलब आंखों से नींद छीन ले..
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बलिदान न सिंह का होते सुना,
बकरे बलि बेदी पर लाये गए,
विषधारी को दूध पिलाया गया,
केंचुए कटिया में फंसाए गए.
न काटे टेढें पादप गए,
सीधों पर आरे चलाए गए,
बलवान का बाल न बाँका भया,
बलहीन सदा तड़पाये गए।।
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हर दिल में चिंगारी यहाँ
पर भड़के तो किस छोर से,
यहाँ सोचते हैं सब बगावत
पर चाहते किसी और से।
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कहीं ज़िद पूरी,
कहीं जरूरत भी अधूरी,
कहीं सुगंध भी नहीं,
कहीं पूरा जीवन कस्तूरी..
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हम टूटे आत्मसम्मान से,
जीत का फ़रमान लिखेंगे,
या तो मर जायेंगे गुमनामी में,
या फिर सीधे 'आसमान' लिखेंगे..
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कभी ख़ुद्दारी की सरहद ही नहीं लाँघते हैं,
भीख तो छोड़िए,हम हक़ भी नहीं माँगते हैं !!
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एक बार फिर
कुछ विश्वासों ने करवट ली,
सूने आँगन में कुछ स्वर शिशुओं से दौड़े,
जाग उठी चेतनता सोई;
होने लगे खड़े वे सारे आहत सपने
जिन्हें धरा पर बिछा गया था झोंका कोई!
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कला की यात्रा में
कला सा चिर है,
जो गतिमान है जीवन में
वही स्थिर है..
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सब रंग यहीं देखे जी के
सब रंग यहीं भोगे सीखे,
खुश-रंग तबीयत के आगे
सब रंग ज़माने के फीके.!
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कड़ी धूप में निकले हैं
तब भूभल से घबराना क्या?
सागर में जब कूदे तब
डूबे डूबे चिल्लाना क्या?
दुनियाँ में जब आयें हैं
तब दुःख से पिण्ड छुड़ाना क्या?
मिले सफलता या असफलता
इस में मन उलझाना क्या?
आगे कदम बढ़ा देने पर
पीछे उसे हटाना क्या?
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