Shailendra S. Tomar   (शैलेंद्र सिंह)
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Joined 23 March 2018


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19 FEB 2020 AT 19:29

यही चमन भी था, यही लोग भी थे
बस ये हवायें न थी, इनमें जहर न था

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12 FEB 2020 AT 14:38

जग का बोझा ढोते-ढोते
खुद की खब्वाहिश भूल गये
लड़के अपने घर का रस्ता
गलियां, चौपालें भूल गये

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6 OCT 2019 AT 12:51

पेड़ों को गिराया जा रहा है
आदमी को मारा जा रहा है,

ये दोनों काम आम हो गये है
ये दोनों काम सरे-आम हो रहें हैं ।।

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5 OCT 2019 AT 18:47

जो समर्थ हैं, सक्षम हैं, धनी-सुखी हैं
शांति-शांति का केवल वे, पाठ करेगें

जो निर्बल है,निस्सहाय,लाचार, दुखी हैं
वे ही महासमर का आव्हान करेगें ।।

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16 AUG 2019 AT 0:08

गये तुम कहां निकल

रे! अटल
मेरे अटल

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22 JUL 2019 AT 23:06

विघन्ताओं से पथ सजे हैं
राह में कंटक खड़े हैं

अंश-अंश चोटिल हुए हैं पांव
धारा के प्रतिकूल बढ़ा रे! नाव

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10 JUL 2019 AT 21:14

हर जश्न मेरे ही घर हो, ये जरूरी नहीं
मैं भी आदमी ही हूँ, कोई फरिश्ता नहीं

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5 JUN 2019 AT 0:57

हवा! जो तू इस बदन को छूकर जाती
किसी गुलिस्तां-सी तू महक जाती
तुम्हें जाना था तो बेशक दूर जाते
पर हमसे जरा तुम कहकर जाती ।।

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29 MAY 2019 AT 13:46

" मैं मनुज हूँ "

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20 APR 2019 AT 21:22

शांति, नीति, धर्मकांति
प्रेम, करूणा और मिलन

खो गये विध्वंस नीचे
ये मनुजता के रत्न

खो गया उल्लास सारा
और उत्सव, हास सब

चढ़ गया सारा का सारा
काल की ही प्यास पर

खो गया रे हाय! करुणा का सकल संसार सारा
हो गया लोपित तिमिर में आज ये आलोक सारा

खो गये है स्वयं दिनकर, धूल के अम्बार में
जग रही रणचंडी केवल, बाण के संधान पे

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