हर वर्ष दिवाली दशहरा और ढेरों पर्व मनाते है
हर वर्ष रावण जलाते है खुद को राम बताते है।
परंतु क्या यह सत्या है ?
❣️ राम कब पाएंगे... ❣️
भाषा हिंदी
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**🌺इंतजार है उस लम्हे का,जब मेरे अल्फ़ाजों से हि मेरी प... read more
पुरुष वर्ग में स्त्रियों के प्रति अपनी एक विचित्र मानसिकता रखने वाले कुछ पुरूषो के विचारधारा पर रचित
एक व्यंग काव्य
"हो सके तो विचार करना🙏 "
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{{कन्या भ्रूण हत्या क्यूं ?}}
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दरवाज़ों पे खाली तख्तियां अच्छी नहीं लगती!
मुझे उजड़ी हुई ये बस्तियां अच्छी नहीं लगती!!
चलती तो समंदर का भी सीना चीर सकती थीं!
यूँ साहिल पे ठहरी कश्तियां अच्छी नहीं लगती!!
ईश्वर भी याद आते है ज़रूरत पे यहां सबको!
दुनिया की यही खुदगर्ज़ियां अच्छी नहीं लगती!!
उन्हें कैसे मिलेगी माँ के पैरों के तले जन्नत!
जिन्हें अपने घरों में बच्चियां अच्छी नहीं लगती!!
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प्यार , मोहब्ब्त , इश्क , एहसास , ख्वाब , वादे हां
सब का सच बस यही है ....
दर्द , दूरी , ज़ख़्म , झूठ , खेलना जज़्बात से ,ख्वाब से , एहसास से .....शायद यही आज की मोहब्ब्त है।
मैं अब कलम का साथ नहीं देता -पार्ट 3
( भाषा दैनिक हिंदी )
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शायद खोया हूं कहीं , किसी राह पे ऐसे जैसे चांदनी रात में तारों की चमक ,
पर अभी गुमनाम नही ,आबाद हूं खुद की चमक से अभी ।।
❣️ मैं अब कलम का साथ नहीं देता ❣️
पार्ट 2
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काफ़ी दिनो से यहां मैने कुछ साझा नहीं किया शायद वक्त ने साथ नहीं दिया या मैं खुद को ढूंढ़ रहा था , नही पता ??
🍁 मैं अब कलम का साथ नहीं देता 🍁
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🧡 शुक्रिया 🧡
हमे जो जीवन मिला उसके लिया।
हमे जो जीने का रास्ता मिला उसके लिया,
चलो आज ऊपरवाले का शुक्रिया अदा करते है।।
भाषा::दैनिक हिन्दी
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आज़ादी के उपरांत मीडिया को देश का चौथा स्तंभ
कहा गया ,
जिसका कर्म-धर्म ,सच्चाई को उजाले में लाना
था।
आज वो हमें और अंधेरे में ले जा रहा ऐसा प्रतीत
हो रहा है।
इन्डियन मीडिया
भाषा हिन्दी
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जिस समाज में स्त्रियों (देवी) कि पूजा होती है,
उसी समाज मै ऐसी घटनाए घटती है कि इंसानियत शर्मसार हो जाती है,
परंतु फिर भी ना रुका है ये,ना थमा है ये!
आखिर कबतक ?
🔻वो काली रात "निर्भया"-2🔺
दैनिक हिंदी
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