दिन भर में हुए रिश्तों का हिसाब कर के
गलतियों के जोड़ को खुशियों के घटाव से
दुखों के भाग को फिर पछतावे से गुणा कर के सोने का..-
कुछ बयां किया
कुछ छिपा लिया
कुछ कहते कहते बचा लिया
ढूंढ रही हूँ खुद को ही
कितना ... read more
उनको पसन्द आने लगीं हैं खामोशियाँ मेरी,
शिकवा शिकायतों के सिलसिले अब खत्म हो चले हैं..-
शिकायतें सिमट रही हैं खुद में अब,
इश्क़ उनकी नजरों में अब गहरा हुआ है..-
कुछ शब्द मेरे डायरी में ही अब सजे रहते हैं,
क्योंकि उनको हमारे बीच के सन्नाटे अच्छे लगते हैं..
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जितना जरूरी लगा
उतना जाना हमें,
जैसा मन किया
वैसा ढाला हमें,
स्त्री मन है
स्थिर कहाँ होगा भला,
बस ये सोच के
सब ने टाला हमें..
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कौन
समझा है
भला स्त्री
को?
ये उम्र भर
का सवाल ही
एक पुरूष के
हृदय में स्त्री
के लिए
अथाह प्रेम
है..
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चलो बहुत हुआ रूठना अब मान भी जाओ ना
तुम में जान बसती है मेरी 'मेरे जाना'..-
दीवारे चीखती हैं मेरे कमरे की,
खौफ़ जमाने से नहीं खुद से होने लगा है,
उसका होना जरुरी था ये सबको खबर थी,
मगर हमें उससे ही कहना नहीं था,
सामने आये वो तो हमनें नज़रे झुका लीं,
ये कहके कि आंखों में कचरा गिरा है,
चेहरे की उदासी में वो सब पढ़ गए थे,
हमनें जो अपने दिल मे लिखा था..-