Shail P   (Shail P)
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Joined 28 May 2020


Joined 28 May 2020
18 HOURS AGO

जरूरी नहीं रोज़ वो मुलाकाते हो
खामोशी से भी याद करना मिलन है

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2 MAY AT 13:50

समेट लेते हो जब अपने बाहुपाश में
व्यस्त बेचैन विकल बेहाल देह हो जाता है।
लिखते हो जो अधरों से, स्पर्श मात्र से
शुभ्र तारा ये जिस्म बन जाता है।
नेह बाट बाट, रग रग का तीव्र हो जाना,
अंजाम फिर, एक दूजे में स्थापित हो जाता है।
तेरे कामपाश में, कामत मेरा तपस मुक्त,
सफेद कमल बन जाता है..।

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30 APR AT 19:00

Most confusing,
over dramatic,
not official,
neither apart,
उस पर
undefined hope
और खयालात,
someday to
embrace the moment,
exchange the beat,
conceive the "hunch".

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29 APR AT 11:52

the smell of familiarity
lingered by the frictions,
the palpitations,
turning the soul quench,
to submit.
And the frame always
poke and urge
to pursue as if
this is the ending,
this is the beginning,
this is everything,
is the update
till date on
"You & I"

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26 APR AT 21:33

हमारे हिस्से की आस औरों में बाट कर,
तुम्हारे हिस्से के नातमाम से तुम मिलते हो हमें रोज़।

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25 APR AT 13:01

वस्ल मुख़्तसर रहा, जानें क्यों हिज्राँ
बेनिशाँ हूक बन मसाफ़त बन गया.।

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24 APR AT 23:08

दिल बेचारा
ये वर्णन कर ही नहीं पाता की
धड़कनों को यूं वेग ना दिया करो,
कभी तीव्र तो कभी शून्य किया न करो।
भला अकेले हम ही थोड़े शामिल थे
चाहत, फिक्र, वफ़ा, दर्द जैसे जज़्बात में,
नजरों ने भी गवाही दी थी और
होठों ने भी तो मुस्कुराया था.
विचारों के उथल पुथल में
सिर्फ हमें ही
कटघरे में न बुलाया करो.।

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22 APR AT 17:10

"चालीस की उम्र में बीस वाले जज्बात"
इक अजीब सी बेचैनी में है वो
हकीकत और ख्वाइशों के बीच जूझती
कभी सुकून के कुछ पल तो कभी हैरानी में डूबी शामें
कशमकश कशमकश जैसे है सब बस है नही वो अब।
जानें क्यों लगता है उसको गुजर गया दौर मगर बाकी है
थोड़ा बहुत अब तक,आकाशवाणी सी गुंजती रहती है।
सोचती है अजीब है ये चालीस का चक्कर
रह भी लेती है, रहा भी नहीं जाता, समझ भी लेती है
दायरे सारे फिर क्यों है भला बाकी बीस वाले जज्बात।
मन में पलने वाली इच्छा, आधे अधूरे ख्वाहिशें
और कुछ चंद जिद्दी हौसले लिए सोचती
मुकम्मल साल अभी भी है बाकी इस जिंदगानी के।
अजब छलावा है ख़ुद से, जी भी लेती है छोटी छोटी बातों में, यादों में
और उसके होने के बीन बेड़ियों सपनों में।
मगर जब नींद नहीं आती, सुकून मिलता नहीं, कहा भी नहीं जाता
रहा भी नहीं जाता, कभी जज़्बा तो कभी जुनून नहीं मिलता,
उस पर "mood swings" भूख की तरह जीवन का एक नियमित हिस्सा हो जाता,
तब बूझ जाती है वो की कि है ये संघर्ष चालीस वाली अल्हड़ बीस अब नहीं आने वाली,
है ये संगिनी आजीवन मन ही मन अब बस कलम और कविता वाली..।।

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21 APR AT 16:31

Touch her with all your truth,
you will be her
all "4" seasons
till her
end.

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21 APR AT 15:32

बहुत कठिन था वापसी
तुम बिन,
मगर था..।

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