मैंने कब कहा की मेरे हिस्से मैं चांद आए
मैं अंधेरे मैं भी खुश हूं....!-
आंसू
महासागरों के जल से भी अधिक दुनियां
के दुखी लोगों ने अपने आंसू बहाए है....!-
प्रेम....
प्रेम दो आत्माओं का मिलन है
नाकी शरीर का संभोग ....
प्रेम मै मनुष्य जलता भी है
और दीपक की तरह रोशनी कर
संसार को प्रकाशित भी करता है
पाप....
मनुष्य पाप करता है अपनी इच्छा को
पूर्ण करने के लिए....
और मनुष्य पुनः भी करता है अपनी
इच्छा से इसलिए पाप का कोई
परिभाषा नहीं होता ...
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शहरे- ऎ - दास्ता सुपुर्देखाक
हो रही है....!
अच्छा है कि मेरा घर
गांव मै है....!
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आदत भी है उनकी
बगावत भी है उनसे
पर नफरत नहीं है
यही तो मोहब्बत है उनसे-
शब्दों का जाल बहुत ही टेढ़ा है
उसने बोल दिया मुझे इश्क़ है
और मैंने मान भी लिया
यही तो फैरा है......!-
आज भी मेरे दर्द को बिना बोले
समझ लेते हो...!
आज भी मुझे अपनी अंचल मै
छिपा लेती हो....!
तुम मुझे मुझ से बेहतर जान लेती हो
तुम मेरी जन्नत हो मेरी मां हो...!-
मन का संसार अंधेरे मै जा रहा है
मानव शरीर के अन्दर भी एक
स्वभाबिक अग्नि रूपी उल्का
प्रज्वलित होती है....!
उसकी चेतना रूपी लौ हमेशा
बनाए रखना चाहिए ताकि हम
सांसारिक कष्टों से लड़ सके ...!-
हां मै एक नारी हूं...!
अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीती हूं....!
हां मै एक औरत हूं....!
दुनिया के नजरों से नजर
मिला के चलती हूं.....!
मै ही एक मां हूं, मै ही बहन हूं
मै ही स्त्री हूं मै ही पत्नी हूं....!
मै ही अग्नि हूं और मै ही एक शक्ति हूं....!
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