سنا ہے بڑا تکبر ہے تم کو کلامِ عشق میں
ٹکراؤ کبھی ہم سے غرور توڑ ڈالیں گے.
सुना है बड़ा तकब्बुर् है तुमको कलामे इश्क़ मे,
टकराओ कभी हमसे गुरुर तोड़ डालेंगे..!-
आरज़ू जाने भी कैसे कोई रुतबा माँ का,
रूए जन्नत से हसीं लगता है तलवा माँ का।
ख़ुद तो भूखी है खिलाती है मगर बच्चों को,
मैं तो क़ुरबान गया देख के फ़ाक़ा मां का।
भूल बैठा वो जवां हो के सभी एहसानात,
जो कभी ओढ़ के सोता था दुपट्टा माँ का।
सारी उलझन मेरी पल भर में सुलझ जाती है,
सामने जब मेरे आ जाता है चेहरा मां का।
दिन में तारे नज़र आ जाते हैं उनको अक्सर,
आरज़ू जिनके सरों पर नहीं साया मां का।
-: अशरफ़ सुलतानपुरी।
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ईद फीकी लग रही है इश्क की तासीर भेजो
ग़ज़ल आओ गले मिलो, या लिबासे ईद में तस्वीर भेजो..😊
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हदीस में है कि रमज़ान में मोमिन का रिज़्क़ बढा दिया जाता है (मिश्कात 1965)
नबीﷺ का फरमान हक़ है किसी तजुर्बे का मोहताज नहीं लेकिन अगर कोई चाहे तो गौर करे रमज़ान में इनकम वही रहती है जो आम महीनों में होती है लेकिन इस मुबारक महीने में दस्तरख्वान पर वो वो चीजें मौजूद होती हैं जो साल भर में कभी नहीं दिखती दस्तरख्वान पर, किस कदर वसीअ होता है दस्तरख्वान इस मुबारक महीने में उतनी ही आमदनी में जितनी हमेशा रहती है😍
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"हाल"क्या कहू लग गई है "नजर" तुम्हारी....।।
ग़ज़ल तुम्हारी थी.. इसलिऐ अब तक "नजर" नही उतारी..💕।।-
ग़ज़ल फोन करो कभी, तुम्हारी बातों को ऐसे सुनेंगे.
जैसे सुनते है लोग कव्वाली नुसरत फतेह अली खान की....!!-