shahnawaz ahmad   (Shahnawaz ahmad)
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Joined 15 February 2018


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Joined 15 February 2018
24 JAN 2023 AT 22:26

रात के सवा एक बज रहे हैं, रात सन्नाटे और बारिश की बूंदों से भीग रही है,ऐसा लग रहा है कि किसी अपने बेहद करीबी शख्स के खो देने का मातम कर रही हो,मैं छत पर इतनी ठंड में बारिश की बूंदों को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा हूं,मैं रोना चाहता हूं ,जी भर के रोना चाहता हूं, पर मेरे भीतर एक जंग छिड़ी हुई है,मेरे वजूद,जिस्म,और मन के बीच तीसरा विश्व युद्ध,इस पशोपेश में फंसे मेरे आंसू मेरी आंखों को एकटक निहार रहे है,जज्बातों के बांध टूटने को हैं, मैंने भी इस रात की तरह गुजिश्ता दिनों में किसी अपने और बेहद करीबी को खोया है, उनके जाने से जिंदगी में एक खालीपन सा छा गया है, इस खालीपन को भरने के लिए मुझे दो बूंद आंसुओं की दरकार है,फिर भी इस खालीपन के भर जाने का अंदेशा है,खैर
मैं आंसुओं को लफ्ज़ों में पिरोने का हुनर सीख रहा हूं,
इस दिल के बोझ को ढोने का हुनर सीख रहा हूं,
हर किसी के अंदर है कई दुनिया आबाद,
मैं खुद का हमसफर होने का हुनर सीख रहा हूं..

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19 OCT 2022 AT 20:01

ये जो लफ्ज़ों को तरतीब से सजाया गया है,
सबको सबका अफसाना सुनाया गया है,
यूंही न समझो कि बेकार गंवाया गया है,
मां के हाथ रखा जो कमाया गया है,
ये कौन है जो रातों को मेरे दिल पर देता है दस्तक,
शायद ये वही है जिसे दिल में बसाया गया है,
शाम ले जाती है और रख देती है सूरज को हर रोज़,
वो भी एक बोझ है जिसे सुबह से उठाया गया है....

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18 OCT 2022 AT 21:42

ए ज़िंदगी ! थोड़ा तो रहम खा ऐसे लोगों पर,
मैं जानता हूं कुछ परिंदों को जो तेरी कैद से आज़ाद होना चाहते हैं...

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17 AUG 2022 AT 23:43

ज़िंदगी क्या है बताएंगे एक रोज़,
ख़ाक मुट्ठी में लेकर उड़ाएंगे एक रोज़,
तुम्हारे सामने ही लिखेंगे तुम्हारे हुस्न की तफ्सीर,
और फ़िर तुमको ही पढ़कर सुनाएंगे एक रोज़,
किसी दिन जो तुम्हारे मुकद्दस क़दम पड़ेंगे मेरे आंगन में,
चांद तारों को अर्श से फर्श पर बुलाएंगे एक रोज़...

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31 JUL 2022 AT 17:18

तेरी एक झलक पाने को सदियां गुजारूं मैं,
और फिर तुझे देख कर,तेरी नज़र उतारूं मैं,
जी भर के तुझे देखूं और इस क़दर देखूं,
और फिर कागज़ पर तेरा अक्स उतारूं मैं,
शाम को सुबह कहूं और सुबह को कहूं रात,
और फ़िर शामों सहर जी भर के तुमको निहारूं मैं..

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23 APR 2022 AT 22:51

गलियां और चौबारे देखे,
हमनें हसीं नज़ारे देखे,
चांद उतर आया है छत पर,
आंगन में बिखरे तारे देखे,
हाथों में फूलों का दस्ता,
आंखों में अंगारे देखे,
कश्ती न टकराई साहिल पर,
हमनें कई किनारे देखे,
एक ही गम से हार गए हो,
हमनें सारे के सारे देखे..

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17 APR 2022 AT 17:30

जो नहीं होगा वो भी दिखाई दे देगा,
इश्क़ आंखों को ऐसी बीनाई दे देगा,

इलहामों का एक शोर उठेगा सीने में,
महबूब की खामोशी में सब सुनाई दे देगा...

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29 DEC 2021 AT 8:41

वो एक लम्हा मुख़्तसर जब पड़ी तुम पर नज़र,
मेरे अंदर से कई सदियां समेट कर ले गया...

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2 DEC 2021 AT 16:58

लिखना चाहता हूं मैं उन माँओं की ममता के बारे में जिनके लाल कभी लौटे नहीं सरहदों से,
उन सुहागनों के बारे में जिनके सुहाग नहीं लौटे, बस उनकी लाशों के साथ लौटा एक उम्र भर का इंतज़ार,
उन प्रेमिकाओं के बारे में जिन्होंने न देखा अपने महबूब को जी भर के बस अपनी नजरों को भेज दिया उनके साथ गली के आखिरी छोर तक....
मैं लिखना चाहता हूं उन सबके बारे में लेकिन मुझे वो लफ्ज़ नहीं मिलते उस ममता को लिखने के लिए, उस इंतजार को लिखने के लिए, उस अधूरे इश्क़ को लिखने के लिए,मुझे लफ्ज़ नहीं मिलते.......

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28 NOV 2021 AT 23:42

लिखना चाहता था मैं सारे ज़माने का ग़म,
मैंने लिखा एक लफ्ज़ "मोहब्बत" ! बस हो गया...

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