Shahid Khan   (Mohd shahid mansoori)
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instagram id- merekhayalat98
Joined 10 April 2020


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18 JUN AT 19:52

झुका दें सर अपना वो हम नहीं l
मौत का ज़रा भी हमें ग़म नहीं l

ये अली और हुसैनियों का मुल्क है ।
यहाँ सर कटाने वालों की तादाद कम नहीं ।

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6 MAY AT 14:46

नदी, झील, तालाब मिलते हैँ
मेरे गाँव में भी गुलाब खिलाते हैँ।
सितारों से भर जाती है जमीन
रात की खामोशी में जब चराग जलते है।

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13 JUL 2024 AT 12:37

रातों में सितारे जरा गिनने दीजिये।
जिंदगी क्या है? जरा समझने दीजिये।
रफ्ता रफ्ता सब मालूम हो जायेगा।
दुनिया में जरा उसे गुजरने दीजिये।

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19 MAY 2024 AT 16:05

लगाकर दांव ज़िंदगी पर , खेल मोहब्बत का खेला है।
जिसे तुम दुनियां समझ रहे हो, ये कुछ वर्षों का मेला है।

दुनियां की ख्वाहिशों में वो ये भी भूल बैठा है ।
कि मै आया भी अकेला था और जाना भी अकेला है।

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12 MAY 2024 AT 22:26

मंज़िल पर वही पहुँचता है,
जो वक़्त रहते सफर पर निकल जाता है।

पीते है बैठकर मयखाने में दोनों
एक बहक जाता है, एक संभल जाता है।

देखा कहाँ है तुम ने मेहनत की चोट को
जो आग से नहीं पिघलता वो मेहनत से पिघल जाता है।

अपनी पहचान खोकर उसके जैसा हो जाता है
कब एक दरिया समंदर में मिल जाता है।

अपनी शान और शौकत पर इतना गुमान न कर
सांसे थमने के बाद लिबास भी बदल जाता है।

अजीब है ये दुनिया और इस दुनिया के लोग
जो बुझाता है आग घर उसी का जल जाता है।

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2 MAY 2024 AT 12:44

ऑंखें वो बताती हैं जो दिल नहीं बता सकता।
जैसे एक फूल अपनी खुशबू नहीं छिपा सकता।

तमाम झीलें, दरिया इस बत की मिशाल हैं ,
जो कहते हैं पहाड़ों को कोई रुला नहीं सकता।

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18 APR 2024 AT 22:50

सूखे दरख्तों के नीचे लोग कहाँ बैठते हैं ।
शाखें टूट जाती हैं ,परिंदे जहाँ बैठते हैं ।

देखो वक़्त कितनी तेज़ी से गुजर रहा है।
जहाँ हम बैठते थे,आज बच्चे वहाँ बैठते हैं ।

अज़ीब खेल है मियाँ, ये मोहब्बत का
लोग एक पल में सब कुछ गवां बैठते हैँ।

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18 APR 2024 AT 13:26

मर कर भी जिंदा हैं ,आज भी कई लोग,
हम जिंदा होकर भी जिंदा नज़र नहीं आते।

ये तो बच्चों की हिफाज़त का तकाज़ा है,
परिंदे अपने लिए ,कभी घर नहीं बनाते।

ऐसे लोगों से सावधान रहने की जरूरत है,
जो हाथ तो जोड़ते हैं मगर हाथ नहीं मिलाते।

सच की हिमायत कर रहे हैं जो लोगे,
घरों में सच के खौफ से चराग नहीं जलातेl

ये तो अदब में झुका है सर तुम्हारे कदमों में
मौत के खौफ से हम सर कभी नहीं झुकाते

बिन बताए समझाता है जो हाल ए दिल मेरा
हाले दिल उसी को सुनाते हैं हर किसी को नहीं सुनाते

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15 APR 2024 AT 21:23

पहुँच कर बुलंदी पर ,बहुत शोर कर रही है ।
अपनी कामियाबी का ज़िक्र हर ओर कर रही है ।

मुफ्त का राशन पा कर खुश होने लगे,बेवकूफों ।
सरकार रोज़गार न देकर हमें कमजोर कर रही है ।

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9 APR 2024 AT 0:12

ताक़त दिखाओगे तुम, जब अपनी वोट से।
खाली हो जायेगी कुर्सियां जो खरीदी हैं नोट से।

बदलेगा दौर तो ये सब तुम भी देखोगे।
किस तरहा टूटता है पत्थर,शीशे की चोट से।

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