Shahid Atar Ali   (Shahid Atar Ali)
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Joined 26 May 2023


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Joined 26 May 2023
7 OCT AT 23:39

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12 SEP AT 0:01

और मर्दों का आलम, ये कैसी बेख़ुदी?
जो रिश्ते थे पाक, वो राहें क्यों छूटी?
बीवी-बच्चों की मोहब्बत भुला दी गई,
वो फुर्सत में फ़हाशत रचा दी गई।
क्या हर ज़ुर्म का मोल, अंजाम है?
क्या हर ठेस में है ये मसर्रत का काम?
जो घर का था मालिक, वही बेवफ़ा,
अपने हक़ से भी वो निकलने लगा।
इस खेल का अंजाम सोचो ज़रा,
इज़्ज़तें बिक रही, रूहें रो रही।
घर वीरान हैं, दिल वीरान हैं,
ज़िंदगियों के फसानो में तूफान हैं।

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9 SEP AT 22:14

ख़ाक से बेदार ये इंसान परेशान क्यों है
अपने आबा के चराग़ों से बे-गुमान क्यों है

जिस्म ज़िंदा है मगर रूह के शोले भी बुझे
ख्वाहिश-ए-नफस से मामूर, हर महमान क्यों है

क़ब्र तक बेचते हैं तारीख़ की दौलत अब लोग
नाम-ए-अस्लाफ़ से शर्मिंदा हर ईमान क्यों है

गुम हुए नींद में, जिन्‍होंने जगाया था जहाँ
सुबह-ए-क़ुरआन से ग़ाफ़िल हैं, मुसलमान क्यों हैं

दिल में सोज़ नहीं, आँखों में यकीं का रवाँ
ख़ुद से बेगाना है, दुनिया से फिर गुमान क्यों हैं

अर्ज़-ए-हक़ बोल के ख़ामोश है सब महफ़िलें
शेर ज़िंदा है तो क़ौम इतनी परेशान क्यों है

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8 SEP AT 23:07

बराहीमी नज़र पैदा मगर मुश्किल से होती है
हवस छुप छुप के सीनों में बना लेती है तस्वीरें

Barahimi nazar peda magar mushkil se hoti hai
Havas chup-chup ke seenon me bana leti hai tasveerein

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8 SEP AT 12:55

नाज़ुक सी कली थी जो गुलिस्ताँ में पली थी,
हवा-ए-ग़ैर ने उसकी जड़ों को जला डाला।

दिल-ए-बेपरदा जब ख़्वाहिशों का शिकार हुआ,
नक़ाब-ए-इश्क़ ने ईमान का सौदा करा डाला।

महरूम रह गईं वो रूहें सुकून-ए-यक़ीं से,
ग़ैरों की महफ़िल में जिन्होंने घर जला डाला।

ख़ुदी का शीशा टूटा, उजाला भी ग़ायब हुआ,
अंधेरे ने चमन का हर नक़्श मिटा डाला।

शाहिद, ये ग़म नहीं कि गुलाबों पे ख़ार आए,
ग़म ये है कि गुल ने ख़ुद ही ख़ुद को खपा डाला।

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8 SEP AT 0:38

मद्द-ए-नज़र

नामो-निशान सबको मिटाकर नफ़रत सज़ा दी गई,
इल्म और अदब के चराग़ बुझा दिए गए, वतन में अँधेरा कर दिया गया,
ताकि जनता कुछ न देख पाए,
मगर एक रौशनी दी जिससे जनता को आस मिले,
पर वो पूरा आसमान नहीं, बस एक रोशनदान है।

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6 SEP AT 21:56

وگرنہ روح کے صحرا میں بیاباں ہے حیات

نظر سے گم ہو گیا جب شعلۂ توحید کا نور
ہزار سجدوں کے باوجود بھی ویران ہے حیات

جو ایمان سے ہو روشن تو گلستاں ہے حیات
ورنہ ہر سمت سے اِک درد کا طوفاں ہے حیات

نہ دل میں سوز، نہ نگاہ میں وہ حق کا جمال
تو صدف بِنا موتی کے، بےمعنی ہے حیات

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4 SEP AT 23:44

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4 SEP AT 23:25

For Iqbaal Saahab urf Sama zehra

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1 SEP AT 21:58

12 rabbiawwal

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