क्या तुम वो शख़्स हो, जो मेरे दिल में रहते हो...
कोई नहीं था कल यहाँ, तुम कबसे इसमें रहते हो...
सुनो आँख मिचोंली खेलें क्या, फ़िर तुम कहीं पे छुप जाओ...
मेरी आँखों पर इक पट्टी हो, मुझे छू छू कर तुम इतराओ...
तुम्हें पकड़ने की कोशिश में, मेरा पेर कहीं पे फ़िसल जाए...
मुझे पकड़ने दोड़ो तुम और मेरा नाम ज़ोर से चिल्लाओ...
इसी तरह से कभी ज़िंदगी में, मैं जब कभी फिसलता हूँ...
हर बार यूँ तुम्हीं आकार मुझे गिरने से बचा लेते हो...
क्या तुम वो शख़्स हो, जो मेरे दिल में रहते हो...
कोई नहीं था कल यहाँ, तुम कबसे इसमें रहते हो...
तेरी याद बड़ी बेरहम है, ये मेरे जेहन का कसूर नहीं...
तू जो चाह ले तो मुझे मिलने आ, तेरा घर मुझसे दूर नहीं...
तेरी रूह तो मेरे क़रीब है, पर तुझे देखने का मज़ा हाय!
मुझे मिलने आ मुझे दिख ज़रा, तू ये मान ले तू मज़बूर नहीं...
मेरी धड़कनों का सवाल है, मेरी ज़िंदगी मुहाल है...
मेरा दिल तुम्हारा घर है, ये तुम ही हो जो धड़कते हो...
क्या तुम वो शख़्स हो, जो मेरे दिल में रहते हो...
कोई नहीं था कल यहाँ, तुम कबसे इसमें रहते हो...
-