Shahid Ansarii📵   (Shaad✍️)
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10 June🎂
#shahid_shaad ✍️
Joined 29 May 2019


10 June🎂
#shahid_shaad ✍️
Joined 29 May 2019
6 SEP 2020 AT 9:25

मेरे आईने की सूरत सबको दिखाता हुआ चलूँ...
आँखे क्या बोलती है उसकी सुनाता हुआ चलूँ...

कदम - कदम पे बढ़ते गए मेरे हौसलों के 'पर'...
बेहिचक राह में उससे नज़रे मिलाता हुआ चलूँ...

सपनों तक ही मयस्सर है मुझे महबूब की सूरत...
रूबरू जो देख लूँ उसको तो इतराता हुआ चलूँ...

सिर्फ़ एक शख्स की तलाश में तुम उम्र हार बैठे...
जानें से पहले तुमको आईना दिखाता हुआ चलूँ...

मैं चलूँ उस ओर जिस ओर ले चलो मुझे तुम...
बाद आने वालों के लिए रस्ते बनाता हुआ चलूँ...

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6 JUL 2020 AT 0:00

मेरी  कोशिश  है कि उनका नेक बेटा बन जाऊँ...
माँ की  हिम्मत बनूँ, बाप का  हौसला बन जाऊँ...

मेरा शौक है, किसी  बेबस का  हौसला बढ़ाना...
ज़रूरत पड़े तो काम भी आऊँ, कंधा बन जाऊँ...

मेरी ख़्वाहिश है, कि सब के  दिलों पे राज़ करुँ...
कि लोग आएं जियारत को मैं मकबरा बन जाऊँ...

मेरा  पेशा वही है, जो मेरी किस्मत में लिक्खा है...
तो ऐसे कैसे भला, किसी का आईना बन जाऊँ...

मेरी  आदत सी पड़ गई है अब ग़म  छुपाने की...
इस तरह मुस्कुराऊं की कोई लतीफा बन जाऊँ...

मेरा मकसद है, जाने के  बाद मुझे सब याद करें...
जाऊँ तो, 'शाद' सबकी आँख का तारा बन जाऊँ...

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30 JUN 2021 AT 16:16

हम  तुमसे  गुफ़्तगू के  अब  हुनर  सीख रहे हैं...
ज़बां-ए-ख़ामोशी-ए-ज़ेर-ओ-ज़बर सीख रहे हैं...

यह हम जो, राह-ए-इश्क़-ए-मश्क पे निकले हैं...
ये तेरे नक़्शे-पा की बदोलत है अगर सीख रहे हैं...

यह दर्द-ए-दिल ये अशआर-ओ-सुखन देखकर...
मेरे ही नाकिद शायरी मुझसे आकर सीख रहे हैं...

फ़िराक़-ए-यार की तड़प फ़िर ये आँसू के झरने...
और इसी में हम कहीं जीने का हुनर सीख रहे हैं...

हमने सीखा नहीं कभी किसी की हाँ में हाँ मिलाना...
ऐ मोहब्बत तेरी ख़ातिर हाँ, मगर सीख रहे हैं...

हम तो कह देते हैं हाल-ए-दिल अपनी जुबानी...
हमने कब कहा हम ग़ज़ल-ओ-बहर सीख रहे हैं...

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11 JUN 2021 AT 17:02

यह तुमसे मोहब्बत का है असर लखनऊ...
कि दुखों में भी शामिल है शक्कर लखनऊ...

बस यहि बात है कि हम बात नहीं करते...
मगर इसमें बिछड़ने का नहीं है डर लखनऊ...

मैं जो लिख रहा हूँ मैं खुद भी नहीं जानता...
पर लिखा है क़लम अश्क में डुबोकर 'लखनऊ'...

दिन गुज़रे साल गुज़रा पर तुम्हारी याद...
उड़ा के ले गई लगा के मेरे 'पर' लखनऊ...

क्या अब भी धड़कता हूँ तुम्हारे सीने में...
ऐ मेरे प्यारे दोस्त मेरे हमसफ़र लखनऊ...

शाद मिले तो कहना लिखते क्यूँ नहीं अब...
कहना तुम्हारे इन्तेज़ार में है मेरा घर लखनऊ...

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28 FEB 2021 AT 16:50

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28 FEB 2021 AT 13:57

क्या तुम वो शख़्स हो, जो मेरे दिल में रहते हो...
कोई नहीं था कल यहाँ, तुम कबसे इसमें रहते हो...

सुनो आँख मिचोंली खेलें क्या, फ़िर तुम कहीं पे छुप जाओ...
मेरी आँखों पर इक पट्टी हो, मुझे छू छू कर तुम इतराओ...
तुम्हें पकड़ने की कोशिश में, मेरा पेर कहीं पे फ़िसल जाए...
मुझे पकड़ने दोड़ो तुम और मेरा नाम ज़ोर से चिल्लाओ...
इसी तरह से कभी ज़िंदगी में, मैं जब कभी फिसलता हूँ...
हर बार यूँ तुम्हीं आकार मुझे गिरने से बचा लेते हो...
क्या तुम वो शख़्स हो, जो मेरे दिल में रहते हो...
कोई नहीं था कल यहाँ, तुम कबसे इसमें रहते हो...

तेरी याद बड़ी बेरहम है, ये मेरे जेहन का कसूर नहीं...
तू जो चाह ले तो मुझे मिलने आ, तेरा घर मुझसे दूर नहीं...
तेरी रूह तो मेरे क़रीब है, पर तुझे देखने का मज़ा हाय!
मुझे मिलने आ मुझे दिख ज़रा, तू ये मान ले तू मज़बूर नहीं...
मेरी धड़कनों का सवाल है, मेरी ज़िंदगी मुहाल है...
मेरा दिल तुम्हारा घर है, ये तुम ही हो जो धड़कते हो...
क्या तुम वो शख़्स हो, जो मेरे दिल में रहते हो...
कोई नहीं था कल यहाँ, तुम कबसे इसमें रहते हो...

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28 FEB 2021 AT 11:27

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27 FEB 2021 AT 17:33

बस यही सोचकर मैं डर रहा हूँ...
अगर कहूँ मैं कि प्यार है तुमसे...
तो न जाने फ़िर क्या जवाब दोगी...
करोगी रुसवा ज़माने में शायद...
या फ़िर कहोगी मुझको प्रेम रोगी...

बस यही सोचकर मैं बिखर रहा हूँ...
मना करोगी तुम तो क्या कहूँगा...
अपने ही मन में मैं सोचा करूँगा...
नहीं करूँगा अब इश्क़ तुमसे...
ना ही अब तुमको देखा करूँगा...

बस यही सोचकर मैं मर रहा हूँ...
कि जीवन अब कैसे कटेगा मेरा...
क़रीब में तन्हा सा बिस्तर रखूँगा...
उसी पे रोया करूंगा शब भर...
उसी पे अपनी आखिरी साँस लूँगा...

बस यही सोचकर मैं डर रहा हूँ...
अगर कहो तुम हाँ मोहब्बत है तुमसे...
तो मारे ख़ुशी के मैं मर ना जाऊँ...
तुम्हारी ना से तो मैं मर गया था...
तुम्हारी हाँ से भी कहीं मर ना जाऊँ...

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27 FEB 2021 AT 9:06

मखलूक-ए-इन्सा कामिल-ओ-ज़हीन, इन्नल्लाह-मा-अस्साबेरीन...
मुबतला रही है बेसब्रीयों में लीन, इन्नल्लाह-मा-अस्साबेरीन...

मायूसी कभी न दिल में लाना, न ही अपना ईमान घटाना...
इस तरह से होती है रब की तौहीन, इन्नल्लाह-मा-अस्साबेरीन...

मंज़िल दर मंज़िल मुश्किलें खड़ी, पर चाहतें हैं मेरी इससे बड़ी...
भरोसा है तुझपे ऐ रब्बुल-आ-लमीन, इन्नल्लाह-मा-अस्साबेरीन...

बशर्ते कि हम पहले ईमान लाये, सजदे में अपने दिल को झुकाये...
फ़िर दुआ-ए-कुबूलीयत पे रखे यक़ीन, इन्नल्लाह-मा-अस्साबेरीन...

तमाम हुई मेरी सब ख्वाहिशें, मुक़ाम मिला मुझे एक नया...
कहा जो मैंने आमीन - आमीन, इन्नल्लाह-मा-अस्साबेरीन...

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26 FEB 2021 AT 16:52

जब से जाना है, कि वो हमें पलट के देखते हैं...
तो हम भी उन्हें अब दरवाजे से सट के देखते हैं...

ग़ैर देखते हैं उनकी आँखों में अपना चेहरा...
उन्हीं आँख से वो हमें पलट-पलट के देखते हैं...

मौसम यूँ हुआ के जैसे बारिश होने को है मगर...
जो वो गुजरे तो बादल भी उनको छट के देखते हैं...

आइने ज़रुर देखते होंगे उनकी सूरत बे-पर्दा...
हम तो बस नाज़-ओ-नखरे उनके घूंघट के देखते हैं...

सुना है तितलियाँ हाथ लगाने से उड़ जाती है...
तो क्यूँ न हम भी कभी उन पे झपट के देखते हैं...

सुना है उनको शेर-ओ-शायरी का शौक है बहुत...
इस बहाने कुछ एक शेर हम भी रट के देखते हैं...

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