Shahid Ansarii📵   (Shaad✍️)
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10 June🎂
#shahid_shaad ✍️
Joined 29 May 2019


10 June🎂
#shahid_shaad ✍️
Joined 29 May 2019
11 JUN 2021 AT 17:02

यह तुमसे मोहब्बत का है असर लखनऊ...
कि दुखों में भी शामिल है शक्कर लखनऊ...

बस यहि बात है कि हम बात नहीं करते...
मगर इसमें बिछड़ने का नहीं है डर लखनऊ...

मैं जो लिख रहा हूँ मैं खुद भी नहीं जानता...
पर लिखा है क़लम अश्क में डुबोकर 'लखनऊ'...

दिन गुज़रे साल गुज़रा पर तुम्हारी याद...
उड़ा के ले गई लगा के मेरे 'पर' लखनऊ...

क्या अब भी धड़कता हूँ तुम्हारे सीने में...
ऐ मेरे प्यारे दोस्त मेरे हमसफ़र लखनऊ...

शाद मिले तो कहना लिखते क्यूँ नहीं अब...
कहना तुम्हारे इन्तेज़ार में है मेरा घर लखनऊ...

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28 FEB 2021 AT 11:27

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27 FEB 2021 AT 17:33

बस यही सोचकर मैं डर रहा हूँ...
अगर कहूँ मैं कि प्यार है तुमसे...
तो न जाने फ़िर क्या जवाब दोगी...
करोगी रुसवा ज़माने में शायद...
या फ़िर कहोगी मुझको प्रेम रोगी...

बस यही सोचकर मैं बिखर रहा हूँ...
मना करोगी तुम तो क्या कहूँगा...
अपने ही मन में मैं सोचा करूँगा...
नहीं करूँगा अब इश्क़ तुमसे...
ना ही अब तुमको देखा करूँगा...

बस यही सोचकर मैं मर रहा हूँ...
कि जीवन अब कैसे कटेगा मेरा...
क़रीब में तन्हा सा बिस्तर रखूँगा...
उसी पे रोया करूंगा शब भर...
उसी पे अपनी आखिरी साँस लूँगा...

बस यही सोचकर मैं डर रहा हूँ...
अगर कहो तुम हाँ मोहब्बत है तुमसे...
तो मारे ख़ुशी के मैं मर ना जाऊँ...
तुम्हारी ना से तो मैं मर गया था...
तुम्हारी हाँ से भी कहीं मर ना जाऊँ...

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27 FEB 2021 AT 9:06

मखलूक-ए-इन्सा कामिल-ओ-ज़हीन, इन्नल्लाह-मा-अस्साबेरीन...
मुबतला रही है बेसब्रीयों में लीन, इन्नल्लाह-मा-अस्साबेरीन...

मायूसी कभी न दिल में लाना, न ही अपना ईमान घटाना...
इस तरह से होती है रब की तौहीन, इन्नल्लाह-मा-अस्साबेरीन...

मंज़िल दर मंज़िल मुश्किलें खड़ी, पर चाहतें हैं मेरी इससे बड़ी...
भरोसा है तुझपे ऐ रब्बुल-आ-लमीन, इन्नल्लाह-मा-अस्साबेरीन...

बशर्ते कि हम पहले ईमान लाये, सजदे में अपने दिल को झुकाये...
फ़िर दुआ-ए-कुबूलीयत पे रखे यक़ीन, इन्नल्लाह-मा-अस्साबेरीन...

तमाम हुई मेरी सब ख्वाहिशें, मुक़ाम मिला मुझे एक नया...
कहा जो मैंने आमीन - आमीन, इन्नल्लाह-मा-अस्साबेरीन...

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4 JAN 2021 AT 16:11

जब कभी बारिश में हम इन्द्रधनुष का समाँ देखते थे...
चढ़ जाया करते थे छतों पर करीब से आसमाँ देखते थे...

सालों पहले जिस पेड़ पर खींची थी लकीरें आज भी है...
रोज़ उसकी शाखों पे लिखा तेरा नाम-ओ-निशाँ देखते थे...

जब मुसीबतें कभी हमे घेर लेती थी सताती थी बहुत...
दरमियाँ में कभी अपने बाबा तो कभी अपनी माँ देखते थे...

बंद आँखों से देखते थे ख़ुद को तन्हा और खुली आँखों से...
बंद कमरे में घिरा हुआ उनकी यादों का धुआँ देखते थे...

एक मुद्दत के बाद जब उम्र ढल गयी आँखें डबडबाने लगी...
ना जाने किससे बात करते थे ना जाने हम कहाँ देखते थे...

तेरी यादें मुख्तसर थी पर काफी थी तेरी याद दिलाने को...
पर तेरी इन यादों से हम हमेशा खुद को परेशाँ देखते थे...

जवानी भले ही गुजरी हो तुम्हारी दुनिया देखने में "शाद"...
मगर बैठाते थे जब कांधे पे नाना तब जहाँ देखते थे...

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28 SEP 2020 AT 17:45

ये जो भी आशिक बीमार नज़र आते हैं...
सब आपके हुस्न के इन्कार नज़र आते हैं...

मैं जब भी गुजरता हूँ आपकी गलियों से...
आप दरवाज़े पे खड़े तैय्यार नज़र आते हैं...

जाने कहां-कहां इश्क बांटती फिरती हो...
हर गली में तेरे हिस्सेदार नज़र आते हैं...

क्या मुझसे प्यार कर पाएगी वो लड़की...
जिसके बाप को हम बेकार नज़र आते हैं...

मैं चाँद से आशिकी कर के लौट आया...
सब सितारे अब बेक़रार नज़र आते हैं...

उम्र गुजारी है तुमसे मिलने ख़ातिर 'शाद'...
मुझसे शायद आप ना गवार नज़र आते हैं...

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6 SEP 2020 AT 9:25

मेरे आईने की सूरत सबको दिखाता हुआ चलूँ...
आँखे क्या बोलती है उसकी सुनाता हुआ चलूँ...

कदम - कदम पे बढ़ते गए मेरे हौसलों के 'पर'...
बेहिचक राह में उससे नज़रे मिलाता हुआ चलूँ...

सपनों तक ही मयस्सर है मुझे महबूब की सूरत...
रूबरू जो देख लूँ उसको तो इतराता हुआ चलूँ...

सिर्फ़ एक शख्स की तलाश में तुम उम्र हार बैठे...
जानें से पहले तुमको आईना दिखाता हुआ चलूँ...

मैं चलूँ उस ओर जिस ओर ले चलो मुझे तुम...
बाद आने वालों के लिए रस्ते बनाता हुआ चलूँ...

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11 JUL 2020 AT 9:42

इश्क  है  तुमसे, ये  सबसे  मुकर जाना...
राज  ही रखना हमको  चाहे  मर जाना...

मैं  तो  काँटा हूँ  हमेशा चुभुंगा  सबको...
तुम फूल  हो तो इक  दिन बिखर जाना...

मुमकिन  है मैं अब  दुबारा जुड़ ना सकूं...
मुझ सा मिले ग़र आईना तो संवर जाना...

फरेबी  आँखे  बहुत  मिलेंगी  तुमको...
रुख़सती  पर  मेरी आँखे  देखकर जाना...

मैं  हूँ  प्यासा, इश्क़  पिलाओ  मुझको...
जैसे  ख़ुदकुशी  पर गले  में ज़हर जाना...

हम लाख कोशिश करेंगे इश्क़ पाने की...
हो सके  तो तुम भी  हद से गुज़र जाना...

शादी के बाद इश्क़ में कैसा ख़तरा 'शाद'...
जाओ भी तुमको है जिधर जिधर जाना...

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10 JUL 2020 AT 15:38

मैं  किस  नज़र  से  नज़र  मिलाऊँ  उससे...
बिखर  जायगा  वो अगर  मिलाऊँ  उससे...

कल  रात  माँ ने  ख्वाब मैं  आकार  कहा...
वक्त  मिले तो  लाकर  घर  मिलाऊँ  उससे...

मैं ग़म - शनास हूँ वो है, खुशियों की  रानी...
मैं चाह भी लूँ तो कैसे जिगर  मिलाऊँ उससे...

फाँसलों  से देखने  से क्या  मिलेगा  उसको...
करीब आये तो इक हमसफर मिलाऊँ उससे...

नज़र  में  आए तो  ग़ज़ल  लिखूँगा  उसपे...
गर ना आए तो उसके घर मिल आऊँ उससे...

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7 JUL 2020 AT 17:10

कहानी  वही  है बस  किरदार  बदल  गए...
मजनूं  आज  भी  है, दिलदार  बदल  गए...

देखा  है बुजुर्गों  ने  अपनी  ही नीलामी को...
मिल्कियत  वही  है  हिस्सेदार  बदल  गए...

तितलियाँ मेरे महबूब से कितनी मिलती है ना...
उड़ती वो भी है बस इनके हथियार बदल गए...

दो पल  साथ रही  फ़िर  छोड़  गयी मुझको...
हम उसके  वास्ते  शायद  बेकार  बदल गए...

मैं तैय्यार था लाने को बारात तेरी चौखट पे...
मगर  ऐन  वक्त पर  मेरे रिश्तेदार बदल गए...

नज़रें "शाद" पे थी, इशारे दोस्त की तरफ...
आँखों ही आँखों में उसके कई यार बदल गए...

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