Shaheed   (आफ़ताब-ए-सितार)
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Joined 21 July 2019


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21 APR AT 19:44

समुंदर फट भी जाए फिर भी
किनारों तक तो ज्वार न आएगा
जो कंपन महसूस कर चुके इक बार
ऐसा ज़लज़ला तो हर बार न आएगा

वो दिन, वो पल तुम्हें याद आ सकते हैं
पर, मेरी जिंदगी में वो इतवार न आयेगा
गर, कसक मोहब्बत की रह गई तो रहने दे
किसी के लिए हमारे दिल में प्यार न आएगा

सर्दी ज़ुकाम सब स्वाभाविक है ये आती रहेंगी
लेकिन अब कभी तेरी यादों का बुखार न आएगा
हां सही पढ़े हो, गर समुंदर फट भी जाए फिर भी
हृदय के किनारों तक मोहब्बत का ज्वार न आएगा

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18 APR AT 21:14

गलती से भी मत कहना की नज़र आना छोड़ दो तुम
चाहे इसके लिए लाख़ दो लाख़ या एक करोड़ दो तुम

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18 APR AT 20:12

“ग्रीन इस्लाम”

बतौर इंसान हमारी घातक कमियों में
एक यह भी रहा है कि हमने धरती को
एक वस्तु के तौर पर माना

जितना हम प्रकृति के प्रति लालची होंगे,
उतनी जल्दी कयामत का दिन आ जाएगा

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17 APR AT 16:43

सुन रहे हैं कि अब रकीब भी दीवार-ओ-दर तोड़ेंगे
अगर सुनेंगे हम बदल गए हैं तो उसी से सर फोड़ेंगे

हुस्न वफ़ा मोहब्बत कसम इज़हार सब का सब झूठ
खुद दिल में झांक कर देखेंगे तो खुद कलाई मरोड़ेंगे

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17 APR AT 16:34

क़िस्सा कहो इसे या कहानी कहो
बस कहते रहने से तो बदलेगी नही
आंसु बहाना हो या फिर रात का रोना
एकतरफा तो कभी तुम्हारी चलेगी नही

माना रातों में दर्द गहरे होते हैं या फिर
यादों को लेने चुपके से आती होगी वो
जैसे तुम नचाते हो तुम्हें नचाती होगी वो
टूटते होंगे दिल भी और करार जाता होगा
अपने चक्रव्यूह में ऐसे ही फंसाती होगी वो

आपके दर्द को देखकर वो भी रोने लगती है
पगली नादान वो अपना ताम्र भी खोने लगती है
दिल जोड़ने का हुनर हमने आबाद कर लिया है
अकेले खुश हैं दूर दिल से सीरी फरहाद कर लिया है

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17 APR AT 16:14

करते आख़िर गैरों से कैसा शिकवा गिला
जब हमारे अपने ही मुखाल्फत करते रहे

यह कैसी बेचैनी हमारे नसीब में आ गई
तौबा, ये कैसी बेकरारी की आह भरते रहे

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17 APR AT 16:10

जब हो ही गया बुलावे का शंखनाद
तो हो रहे हैं हम फिर से यहां आबाद

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13 APR AT 16:30

Coming Soon....

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4 APR AT 0:31

अच्छा वक्त बीता आप सबके साथ
हमेशा कुछ अच्छा लिखने की कोशिश की
बहुत अच्छा पढ़ने का यहां मौका भी मिला

मिलते हैं फ़िर कभी,
अल्लाह हाफ़िज़ दोस्तों

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3 APR AT 7:49

Aaj koi post nahi

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