Shahbaz Alam  
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नही मालूम जब मंजिल कल की, करू क्यों इन्तेज़ा मै उस पल की....।।।
Joined 10 November 2019


नही मालूम जब मंजिल कल की, करू क्यों इन्तेज़ा मै उस पल की....।।।
Joined 10 November 2019
23 JAN AT 11:09

बेवक्त ही सही मुझे वक्त ने पुकारा,
मैं आज नहीं मुझे कल ने पुकारा
ये डर की हकीकत तुम समझोगे नहीं,
असल तुम्हें आज ने जीना मुझे कल ने सिखाया।

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21 OCT 2023 AT 1:15

Sometimes acceptance is a good healer.

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12 OCT 2023 AT 0:00

अब कास की वो समझते मुझमें बाकी नहीं कुछ खुदा का,
मैं तो अपना भी ना रहा अब जब उजड़ गए घर परिंद का,
वो कहते रहे खुदा है वहां मुझको ख़ाक दिखा मुकद्दर का
अब सिलसिला भी रुकता नहीं ये रास्ता जो ख़त्म सा।

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19 AUG 2022 AT 9:46

अब खास क्या कहे, या तो तुम हो या बस तुम ही हो.

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4 JUL 2022 AT 21:40

हर सुबह शाम सी लगती है, ना जाने रात कब गुजरेगी |

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4 MAR 2022 AT 19:28

काश की मैं होता, तो मैं होता।

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26 FEB 2022 AT 17:55

जब ख़ाक में मिलना ही मुकद्दर हुआ,
गिले शिक़वे, खुश खुर्रम ज़िन्दगी ही क्या।

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21 FEB 2022 AT 11:52

Life without present could not have a better future.

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29 JAN 2022 AT 9:51

मैं मुसाफिर, मुसाफिर की हद क्या।
जिस्म मिट्टी की, है मेरी औक़ात क्या।
ये दीन ये दुनिया जो ख़ुदा की अमानत,
अपना कहूँ इसे है मेरी औक़ात क्या।

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25 JAN 2022 AT 19:28

अपनी कैफ़ियत
यूँ ज़ाहिर न किया करे,
मुहब्बत से यक़ीन उठ जाएगा
जन का।

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