Shahbaz Alam  
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नही मालूम जब मंजिल कल की, करू क्यों इन्तेज़ा मै उस पल की....।।।
Joined 10 November 2019


नही मालूम जब मंजिल कल की, करू क्यों इन्तेज़ा मै उस पल की....।।।
Joined 10 November 2019
26 FEB AT 15:34

सूरत-ए-हाल ये है की
मैं, मैं ना रहा तुझमें खोकर !
और तुम, तुम से अब
कोई और होगए l

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16 FEB AT 21:52

कि शाह, वो मुकद्दर में नहीं तो क्या
रूह-ए-दिल में तो हैं !

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14 FEB AT 7:39

मर भी जाऊं तो दफ़न न करना मुझको,
कोई शख़्स जिंदा है अब भी दिल में...

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4 JAN AT 8:36

Every angle creates a new shape.

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3 JAN AT 17:42

एक बात थी कहनी तुमसे,
तुम ख़्वाब सी लगती मुझको
ना खोलू आंख मैं अपनी ना जागूं रात को यूंही
तुम सुबह भी लगती मुझको
जब रात को नींद ना आती
एक नूर जो चेहरे पे तेरे
नईं सुबह सी लाती मेरे !

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23 JAN 2024 AT 11:09

बेवक्त ही सही मुझे वक्त ने पुकारा,
मैं आज नहीं मुझे कल ने पुकारा
ये डर की हकीकत तुम समझोगे नहीं,
असल तुम्हें आज ने जीना मुझे कल ने सिखाया।

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21 OCT 2023 AT 1:15

Sometimes acceptance is a good healer.

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12 OCT 2023 AT 0:00

अब कास की वो समझते मुझमें बाकी नहीं कुछ खुदा का,
मैं तो अपना भी ना रहा अब जब उजड़ गए घर परिंद का,
वो कहते रहे खुदा है वहां मुझको ख़ाक दिखा मुकद्दर का
अब सिलसिला भी रुकता नहीं ये रास्ता जो ख़त्म सा।

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19 AUG 2022 AT 9:46

अब खास क्या कहे, या तो तुम हो या बस तुम ही हो.

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4 JUL 2022 AT 21:40

हर सुबह शाम सी लगती है, ना जाने रात कब गुजरेगी |

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