Shagun Yadav   (Sunnyia)
2.4k Followers · 1.4k Following

Joined 3 December 2018


Joined 3 December 2018
28 OCT 2024 AT 0:34

बचपन मासूम है,जवानी क्रूर है।
बचपन बेबाक़ है,जवानी जज़्बात है।

जवानी कश्मकश है ज़िम्मेदारियों की,
बचपन सिलसिला है नादानियों का।

बचपन आज़ाद है गलियारों में,चौबारों में,
जवानी क़ैद है चार दीवारों में, किताबों में।

जवानी ख़ामोशी है कोलाहल की,
बचपन कौतूहल है मनमानी का।

-


1 JAN 2024 AT 0:17

बरस-ए-सबक़ इक कश-सा मिला,
हीरों का मोल क्यूं मोतियों-सा मिला।

-


9 DEC 2023 AT 22:43

छोड़ ज़माने को,मग़रुर हो जायेंगे,
तुम जो याद आये!, तो आयेंगे ।

रस्म-ए-वफ़ा ना भायेंगी बहोत,
ग़म-ए-ज़दा रात आयेंगी बहोत ।

खुशनुमा पल जब उम्र में ढल जायेंगे,
हैरत-ए-अंदाज़, याद हमारे आयेंगे।

नेकी ये ज़माना भूल जायेगा 'सनी' ,
याद तो रहूंगा!,थोड़ी ख़राबियाँ ही सही!

-


12 OCT 2023 AT 20:00

एक अंधेरी रात के बीचों-बीच,
हूं स्तब्ध खड़ा सांसों को खींच।

ख्वाहिशों में सिमटती है दुनिया मेरी,
जब करवटें बदलती है मुश्किलें मेरी ।

खो रहे हैं गहरी बातों में अपनी,
मेरी और ख्वाबों की दुनिया है अपनी।

खामोशियों है जताती दिलों का रास्ता,
शोरगुल है छिपाता दर्दों की दास्तां!

-


27 JUN 2023 AT 20:17

काला सा रंगा हुआ है चाॅंद,
धुॅंधली सी शामें, उजली सी हैं रात।

आँधियों में इक दरख़्त ने दी है पनाह,
इन सिसकियों में टूटता है ये जहां।

इक फ़ीका सा रंग है मुहब्बत का,
इक ख़ाली सा है दिल का मकान।

टूटते हुए तारों सा है इक ख़्वाब,
बिखरा हुआ सा है शाख से इक गुलाब।

-


14 FEB 2023 AT 12:07

कई रास्ते छोड़ हर मुश्किल से लड़ी थी,
जिंदगी चुनौतियों में लिपटी खड़ी थी।

अंगारों के बिस्तर पर मैंने सपने बोएं है,
जो पनपे ना थे कभी,अब चैन से सोएं है।

मौसम गमों के यूं ढलते चले गए,
दर्द अपने-पराए सब पिघलते चले गए।

क्या होना है, क्या परवाह! क्या अंत है इसका,
मीरा के जो प्रभु से गिरिधर, कैसा अंत है उसका।

-


14 DEC 2022 AT 19:14

सूखे हुए फूल-सा किताबों मे मिलना,
बुराई के ज़माने में अच्छाई में जलना।

सीखा है मैने हँसकर ज़हर पीना,
लाशों के बीच, जिंदा रहकर जीना।

मजबूरियां थी क़ातिल ख्वाहिशों की,
खुशी ना थी मुझे यूं शौक जलाने की।

डुबाने को एक बूंद ही काफी है,
ये समंदर तो मुझे यूं ही डराता है।

-


13 DEC 2022 AT 14:09


आसमां की चाहतें अब बेमतलब सी लगती हैं,
आईनों में ये सूरतें अब गैरों सी लगती है।

कुछ बातें हैं इबादतों के पिंजरों में कैद,
गमों की इक महफ़िल हर रोज़ सी लगती है।

है हालातों या इन बादलों की ये साजिश,
महफूज़ सी ये छत हर बरसात टपकती है।

है वाकिफ़ हर ज़र्रा मेरे इस अक्स से,
सैलाबों में ये कश्ती अपनी सी लगती है।

-


26 NOV 2022 AT 23:08

है करोंदता हर करवट, फाँसलों में लाड़ तेरा,
रौंदकर सारी दुनिया, ढूंढ़ता हू‌ॅं माॅं ज़माना तेरा।

-


22 NOV 2022 AT 15:14

मेरे हिस्से में थे ग़म-ज़दा पल, मैंने चुने नहीं है,
बिखर रहे हैं वो भी ख्वाब जो मैंने बुने नहीं हे।

-


Fetching Shagun Yadav Quotes