आँखे आज भी नम है,
आपके जाने का आज भी गम है।
कुछ अनोखी,कुछ रोचक कहानी वो सुनाया करते थे
छोड़ कर चले गए है वो आज हमे अकेला
जो हमसे खूब लाड लड़ाया करते थे
आप के साथ बिताया हर वक़्त बहुत याद आता है
उंगली पकड़ कर आपने चलना सिखाया
सही गलत का पाठ समझाया
फिर क्यू अकेला छोड़ कर चले गए हो बाबा... "बड़े पापा"🥺-
वो जो सीमा पर
हर दिन अपने लहू से राष्ट्रगान लिखते है।
पूछे कोई नाम तो इंकलाब लिखते है।
वन्दन हम उनकी वीरता पर बारम्बार लिखते है।।
जख्मी सीने पर बहादुरी के निशाँ मिलते है,
और चीरकर छाती गद्दारों की,
सलामत देश का सम्मान लिखते है।
आज उन सैनिको के नाम एक पैगाम लिखते है।।-
बिन बोले हर बात वो समझ लेती है,
मेरे लिये वो पूरी दुनिया से लड़ लेती है।
प्यार से अपने सींचती डांट से समझाती है,
अपने हिस्से की खुशियों से मेरा दामन भर देती है।
रिश्ते तो बहुत हैं जिंदगी में पर शब्दो मे बयां हो पायें
कभी न एक माँ का रिश्ता हर रिश्ते से खास है।-
अपनो की अहमियत को
जो साथ रहते है अपनो के
वो अपनो की अहमियत
को भूलते जा रहे हैं-
जो जिंदगी की हर तकलीफ
बिना कहे दूर कर देता है
पर कभी अपने दर्द का ज़िक्र
भी किसी के सामने नही करता
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थोड़ी सी अलग, पर है बहुत प्यारी
विधाता ने गढी मूरत सबसे न्यारी।
बुद्धि और ज्ञान में है वो श्रेष्ठ, है ऐसी गुरु हमारी।
रिश्ता हमारा बड़ा ही न्यारा, इसे फुरसत से हैं, हमने संवारा।
गर हो जाऊ परेशान, तो समाधान ढूंढ लाती है।
हो उदास मेरी आँखें तो मुझे हँसाती है।
भटक जाऊ किसी राह में तो हमेशा मुझे सही गलत का
भेद सिखाती है।
जितना भी कहू कम है पर बहुत कुछ कहने का मन है।
आज दिन है कुछ खास जन्म दिवस है गुरु माँ का आज
कामना यही करती हूँ मैं खुशियों से दामन भरा हो आपका,
कभी न टूटे ये अटूट रिश्ता आपके और हमारे साथ का... ।-
बेटे की आरज़ू में जन्मी हूँ
क्या दादी की आँखों मे आज भी खटकती हूँ क्यू की मैं बेटी हूँ
जन्म दिन जानती हूँ। भाई का मनते देखी हूँ
भाई के भविष्य के लिए छोड़ चुकी मै पढ़ाई हूँ क्यू की मैं बेटी हूँ
पापा की लाडली हूँ पर जमाने के लिए मैं बोझ हूँ
उम्र क्या हैं, दिनों महीनों मैं हवस के हाथ चढ़ जाती हूँ क्यू की मैं बेटी हूँ
प्यार करू तो बेग़ैरत, न करू तो तेजाब का शिकार बन जाती हूँ
सड़क पर चलती हूँ तो इज्जत को घबराती हूँ क्यू की मैं बेटी हूँ
बन भी जाऊँ कुछ, तो दफ्तर में बदसलूकी से न बच पती हूँ
जितनी बड़ी डिग्री दूल्हे की, उतना दहेज मैं लाती हूँ क्यू की मैं बेटी हूँ
बची कुची कीमत मैं बहू बन के चुकाती हूँ
माँ बनती हूँ तो इसी चक्रव्यूह अपनी लाडो को भी पाती हूँ
क्या कसूर है मेरा बस यही क्यू की मैं बेटी हूँ
लेकिन वक़्त बदल रहा है वो दौर जरूर आये गा
समाज मातृशक्ति को अपनाये गा
मैं ही संस्कार, मैं ही प्यार
मैं ही समस्त जन का आधार
मुझे गर्व है क्यू की मैं बेटी हूँ।-
ये साल कुछ यू गुजर गया
ताश के पत्तो के जैसे कितनो
के घर भिखेर गया-
बहुत संघर्ष करना
पड़ता है जिंदगी मे
वरना लोग अपनी ख्वाहिशे
दुसरो पे थोप दिया करते है
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