Shagun Kaushik  
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Joined 26 September 2017


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Joined 26 September 2017
12 JAN 2021 AT 1:59

हार मान जाता हूं
खुद से खुद की लड़ाई में
सामर्थ्य चाहत हिम्मत
कुछ तो कम है
या बस बहाने हैं
बह जाने के
समय की धार में
बच निकलने के
तोड़ती मेहनत से
जिंदा रहना ज्यादा जरूरी है
या सपनों का मिल जाना
कहीं सपनों के सिलसिले में
सपनों में ही ना सो जाऊं
कुछ ऐसी ही कश्मकश है
जिनमें उलझ जाता हूं
कि फिर खुद से ही
हार मान जाता हूं ...

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28 NOV 2020 AT 21:45

मैं कमाने लगा हूँ
कुछ पैसे कुछ इज़्ज़त
थोड़ी सी सहूलत
और बहुत सारा सिरदर्द
मेरा पूरा दिन बँधा है
खाने कमाने में
रोज उठता हूँ
खाता हूँ, जाता हूँ
कमाता हूँ, खाता हूँ
आता हूँ, खाता हूँ
खाके फिर सो जाता हूँ
खाने कमाने अगले दिन
कुछ भी नया नहीं है
कि एक मशीन हो चला हूँ
मैं, अब कमाने लगा हूँ...

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20 JUN 2020 AT 18:27

the uncertainty it has
the possibilities it offers
the happiness we give to others
& the solution we find for the equation of life.

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19 JUN 2020 AT 19:40

Hey !
You're lucky you got a chance to get this letter. It doesn't matter if you ever won a treasure hunt in your college or not but here's a once in a life chance to be a hero. Just go opposite to the sea current and you'll find an island, you'll meet a person there and he will tell you the rest.
Hapoy Journey Discoverer
Your Lucky Luck

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18 JUN 2020 AT 22:45

क्या दिखता एक पर्वत में
एक घना अकेला पागल सा
नीरस निर्जन चुप चाप रहे
निश्चल हो निष्ठुर खड़ा रहे
बेजान पत्थर, बस पड़ा रहे..
पर सच कड़वा कुछ और कहे
कानो को छूती पवन वहे
झूमे तिनके संग मोर कहे
माथे पर उसके भी ऋण है
रेखा न चिंता की किनचिन है
दिखने को ऊँचा दिखता है
गहरे से गहरा होता है
कहने को पत्थर होता है
वनप्राणी का रक्षक होता है..
नीरसता सूनी शामिल है
टूटे दिल के कुछ किरचों में
निर्जनता रोज झलकती है
लोगो के सघन समूहों में
वो पत्थर मुझको दिखता है
मानव पीड़ा जो देता है..
पागल हैं हिन्दू मुस्लिम हम
गुरुओं के खेल खिलोने सब
विकसित मानवता झूठी है
नीरस निश्चल निष्ठुर निर्जन
ये राग अलौकिक शाश्वत है
शून्य शांत, एकाकी भाव अमर !

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17 JUN 2020 AT 23:00

गिलास खाली हो
पानी धीमें भरा करो
पानी की धार से भी
काँच टूट जाता है
कोई अपना सा चेहरा हो
आहिस्ता से लड़ा करो
कि बातों की धार से भी
रिश्ता टूट जाता है ..

बड़े जो बन गए तुम
ना केवल रोब झाड़ो तुम
कि गुस्सा खूब करते हो
कभी लाड़ जता लो तुम
घर-घर की लड़ाई में
अक्सर ऐसा ही होता है
कि गुस्सा बड़ा ही होता है
और छोटा टूट जाता है... शगुन कौशिक

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16 JUN 2020 AT 8:05

गर्म रहा है दिन आज का
गर्मी थोड़ी ज्यादा है
कहीं बुस ना जाये
कि छीके पे रख दूँ, अरमान मेरे...
कुछ बिल्ली भी बैठीं हैं
रात की फिराक में
झपट पडें और छीन ले
कि उसी छीके पे रखे हैं, अरमान मेरे ।

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15 JUN 2020 AT 23:05

दौड़ते है सपने मेरे
काले अंधियारे में
नहीं मिलती मंजिल हर बार
कभी तेज कभी धीरे
चलती हैं साँसे मेरी
रात की रहगुज़र पर..
दौड़ते हैं सपने मेरे
आंखों के जागने तक
सुबह फिर लग जाती हैं
साँसे भी, वही पुरानी
ज़िन्दगी की कश्मकश में
पर दौड़ते तो हैं
सपने मेरे, हर रोज़
रात की रहगुज़र पर...

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19 MAY 2020 AT 21:31

तुम पूछो तो सही
कैसा हूँ आजकल
एक जवाब मौज में
अर्शों से सच नहीं बोला
बोलना चाहता हूँ..
रोने का मन है
बिलखने का
टूट के चूर होने का
आँशुओ में बह जाने का
पर रोया जाता नहीं..
अब बड़ा हो गया हूँ
घुटता रहता हूँ
नहीं खाया जाता खाना
अक्सर दर्द से छक जाता हूं
रोया जाता नहीं ..
शुक्र है कलम तेरा
हल्का तो कर देती है
पर रुआँसा दिल भारी है
लिख के ही चुप हो जाता हूँ
रोया जाता नहीं..
तुम बच्चे हो
बच्चे बने रहो
कि ये बड़ो के चोचले हैं
रोना तो है, रोया जाता नहीं... शगुन कौशिक

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16 MAY 2020 AT 7:46

सुनहरी आग जो जलाते हो न हर सुबह
कौन सी घड़ी लगाते हो
हर रोज़ शाम को बुझ जाती है
या फिर बुझने से शाम होती है
बताना मझे कभी
जब खाली हो
या तुम्हारा रविवार हो
मुझे भी दिखाना किसी रोज़
मैं भी देखूँगा
वो कौन से पत्थर होते है
जिन्हें टकराते हो
जो सधी सुनहरी आग लगाते हो..

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