ख़त
आज कि तारीख़ याद है तुम्हें?
आज हमें अलग हुए तीन साल हो गए।।इन तीन सालों में कितना कुछ बदल गया ना। पर अब भी बस एक चीज़ जो नहीं बदली वो मेरा तुम्हें ख़त लिखना।।
तुम कहा करते थे ना, वो बात मैसेज मे कहाँ जो तम्हारी ख़त मे है।।इसलिए आज भी हर महीने तुम्हें एक ख़त
लिखती हूँ।।पहले पहल तो दिल के हालात थे उसमें, अब बस तुम्हारी ख़ैरियत और बदली हुई चीज़ें।।
अरसा बीत गया और मैं तुम्हें ख़त लिखती रही शायद इस उम्मीद में, कि कभी तुम्हारा जवाब आएगा।
हमारे जो कुछ कॉमन दोस्त थे ना वो कहते हैं कि अब तुम्हारा पता बदल गया है, उस जगह अब तुम नहीं रहते, जिसकी दहलीज़ पे बैठके हम दुनिया जहां कि बातें किया करते थे, हज़ारों सपने देखा करते थे।।
पर पता है तुम्हें शुरू शुरू में तुम्हारे जवाब का इंतज़ार रहता था, पर अब तो मुझे लिखने की आदत सी पड़ चुकी है।। अब मेरे ख़त तुम्हारे जवाब का इंतज़ार नहींं किया करते।।शायद अब मैं ख़ुद ही अपने ख़त का जवाब ढूंढ लिया करती हूँ।।और हमारे बीते लम्हों को याद कर लेती हूँ।।
और अब इसी में सुकून है।।
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