सफ़र कहां ,
मंज़िल कहां,
तुम नहीं तो
कुछ भी कहां !!
हंसता रहा,
बढ़ता रहा,
ना जाने,
किधर चलता रहा!!
वो मिला नहीं,
किसी से गिला नहीं,
आगे बढ़ता रहा,
ख़ुद से मिलता रहा।
वो नहीं तो भी है ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी मुझसे कहती रही।
सफ़र बढ़ता रहा,
मंज़िल दिखती रही।-
शुक्रिया दिल से
जिन्होंने भी मुझे बताया ,सिखाया और मेरा हौसला बढ़ाया।
अलविदा नहीं कहूंगा। दिल में तो रहेंगे ही आप सब कहीं ना कहीं।-
जो महसूस करता हूॅं लिख देता हूॅं।जो जीता हूॅं लिख देता हूॅं।कोई नहीं होता जब सुनने वाला तो पन्ने पर अपनी बातें लिख देता हूॅं।
सबसे पहले नाकाम सर का दिल से शुक्रगुजार हूॅं जो हमेशा हमलोगो को सिखाते हैं और हमें वक़्त देते है। मैं सच्चे दिल से उनका शुक्रिया करता हूॅं। शायद मैं अच्छा शिष्य नहीं रह पाया उनका या हूॅं भी नहीं पता।हाॅं पर इतना तो ज़रूर है, उनके लिए मेरे दिल में बहुत सम्मान और आभार है। जो मैं यहाॅं लिख रहा हूॅं ये कोई चापलूसी या पॉलिश नहीं है।दिल से अच्छे लगते है वो इसलिए दिल से अल्फ़ाज़ निकलते हैं।ऐसे मैं अपने लाईफ में लोयल रहा हूॅं चाहे वो कोई भी रिश्ता रहा हो और ये गुरु और शिष्य का रिश्ता तो काफी ऊॅंचा है।मुझे नहीं पता ये मैसेज उन तक पहुॅंच पाएगा या नहीं भी।हाॅं शायद टेलीपैथी से पहुॅंच जाए तो अच्छा होगा।मैं चाहता तो उनके प्रोफ़ाइल में जाकर मैसेज दे सकता था।पर अगर इजाज़त नहीं हो घर में जाने की तो जाना सही भी तो नहीं।ख़ुद्दारी पसंद तो मैं भी हूॅं। और हाॅं इसका मतलब ये नहीं है कि वो मेरे गुरु नहीं है।हर हाल में वो मेरे गुरु थे और हैं, चाहे वो मुझे अच्छा शिष्य समझे या नहीं। बस जो दिल में आया लिख डाला।
अब बस उनके लिए दिल से दुआ ,ख़ुश रहें ,आबाद रहें, कामयाबी की ओर बढ़े वो और हमेशा सेहतमंद रहें।
(छूटते तो नहीं वो शख़्स कभी
दिल में जो रहते हैं कहीं न कहीं।)-
दूर जबसे हुए ख़्वाब तुम बन गए
आँखों में ही रहे आब तुम बन गए।
मैं भटकता सा बादल तेरी ओर का
ख़ूबसूरत सा महताब तुम बन गए।
मोती तो थे नहीं तुम समन्दर के फिर
ऐसा क्या था जो कमयाब तुम बन गए।
इक नहीं सौ दफा मैं जिसे पढ़ लूॅं अब
इक ग़ज़ल की वो कीताब तुम बन गए।
तुम तो जज़्बाती इतने नहीं थे कभी
क्या हुआ तुमको, शादाब तुम बन गए।-
इक नहीं सौ दफा मैं जिसे पढ़ लूॅं अब
इक ग़ज़ल की वो कीताब तुम बन गए।-