न पायदार है इंसान की फ़ितरत मौसम के मिज़ाज की तरह तू भी दिल से उतर जाएगा एक रोज़ जिस्म से पैरहन की तरह वो जो हमनवा - हमनफ़स हुआ करता था मेरा कभी एक अरसे बाद कल मिला बाज़ार में किसी ना महरम कि तरह
यूँ तो पहचानते नहीं मिलते हैं जब मतलब से मिला करते हैं अबके लोग दिलों में दिमाग़ लिए फिरा करते हैं बातें ईमान वाली मगर बात बात पे ख़ुदा बदलने वाले मैने देखा है लोग कैसे अपने क़िरदार से गिरा करते हैं