जगतः पितरं शम्भुं जगतो मातरं शिवाम्।
जगतो विघ्नहर्तारं नमामि गणनायकम् ।
जगतः पालकं विष्णुः जगतः सुखदां रमाम्।
जगदारोग्दं सूर्यं नामामि पितरौ निजौ।।-
उपवासादिना तेन पोषितो मधुसूदनः।
तोषिते तत्र जायन्ते नराः पूर्णमनोरथाः।।
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जो बीत गयी सो बीत गयी, तकदीर का शिकवा कौन करे।
जो तीर कमान से निकल गयी, उस तीर का पीछा कौन करे।।-
" एकैव सर्वत्र वर्तते तस्मादुच्यते एका। एकैव विश्वरूपिणी तस्मादुच्यते नैका"
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" जातिश्रेण्यधिवासानां कुलधर्मांश्च सर्वतः ।
वर्जयन्तिचये धर्मं तेषां धर्मो न विद्यते ।। "
☛ जो पुरुष अपनी जाति - आश्रम तथा कुल के धर्मों का परित्याग कर देते हैं और जो लोग धर्म मात्र को छोड देते हैं उनके लिए कोई धर्म ( प्रायश्चित ) नहीं है अर्थात् किसी भी प्रायश्चित् से उनकी शुद्धि नहीं हो सकती।-
" उपेये सति ये हेयास्तानुपायन् प्रचक्षते "
उपेय की प्राप्ति हो जानेपर जिनको छोड दिया जाता है उन्हें उपाय कहा जाता है।-
तावत् गर्जन्ति शास्त्राणि जम्बुका विपिने यथा।
न गर्जति महातेजा यावत् वेदान्तकेसरी।।
अर्थात: अन्य मतवादो के श्रृंगाल तभी तक कोलाहल करते है। जब तक वेन्दात के महातेजस्वी सिंह की गर्जना सुनाई नहीं देती है।
जय आद्यगुरुशंकराचार्य-
हमारे मूल में माता पिता हैं , उन सबके मूल में गोत्र प्रवर्तक ऋषि हैं , उनके मूल में ब्रह्मा जी हैं , उनके मूल में श्रीमन्नारायण हैं।
- पुरीपीठाधीश्वर शंकराचार्य निश्चलानंदजी महाराज-
वेदों में कुश, चरु आदि के लिए भी सम्बोधन है। इससे सिद्ध है की कर्मकाण्डपरक श्रुतियाँ भी संपूर्ण प्रपंच की चिद्रूपता-चिन्मयता ही सिद्ध करती है।
- स्वामी करपात्री महाराज-
श्राद्ध - पितृगायत्री
देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमोनमः।।
(ब्रह्मपु. २२०|१४३.१४४)
आद्यावसाने श्राद्धस्य त्रिरावृत्त्या जपेत् सदा।
पिण्डनिर्वपणे वा$पि जपेदेवं समाहितः।।
श्राद्धके प्रारम्भ, मध्य तथा अन्तमें निम्न पितृगायत्रीमन्त्रका जप करना चाहिये।
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