Shaan T Singh   (⚓ Shaan ✍)
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Joined 20 January 2019


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12 JUL 2022 AT 8:05

कि मैं तो चल ही पड़ा
चांद को पकड़ने को,
चांद को भी कोई
करतब तो दिखाना होगा|
ख़ैर रस्ता नया
मुझको तो बनाना ही है,
चांद को भी तो मगर
पांव बढ़ाना होगा|

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10 JUL 2022 AT 11:22

मज़नू यानि मय+जुनूँ (जुनूनी) होना इश्क़ की अवस्था नहीं! अगर है भी तो यह दशा निम्नतम् ही होगी!
इश्क़ तो कलाकार, उससे ऊपर सृजनहार, उससे ऊपर भक्त होने से प्रमाणित होता है!

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5 JUL 2022 AT 13:50

....

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4 JUL 2022 AT 8:28

बहुत चिंता रहती है
"उसकी" !! क्योंकि
.........
अब वो मुझसे नहीं
खुदके अंतस से
भाग रही है

"ईश्वर उसे संतुलित रखे"

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15 JUN 2022 AT 7:18

इंसान अल्पायु है
यादें दीर्घायु हैं
विचार अमर हैं

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11 JUN 2022 AT 6:44

साज हूँ जो बजा रहा है कोई, उसपे करतब दिखा रहा हूँ मैं!
जाने ये कौन लिख रहा है ग़ज़ल, बस इसे गुनगुना रहा हूँ मैं!

दर दरीचे भी खुले रहते हैं, कहीं पहरा न रोक टोक कोई
और फिर भी बंधे हुओं जैसा हर घड़ी कसमसा रहा हूँ मैं!

अनदिखी है कोई बिसात बिछी, हर कोई चाल चल रहा आके,
रोज लगता हूँ दाव पर मैं ही, और हारा भी जा रहा हूँ मैं!

गम किसीका समझ नहीं पाते, आह-चीखें भी ये नहीं सुनते
अश्क बेबस इन्हें नहीं दिखते, इस लिए मुस्कुरा रहा हूँ मैं!

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9 JUN 2022 AT 7:29

भाता नहीं, तो करना क्यूँ?
साफ कहो जी, डरना क्यूँ?

अपनी खातिर नहीं जिए तो
किसीकी खातिर मरना क्यूँ?

अनमन होके अपने सर को,
किसीके कांधे धरना क्यूँ?

प्रीत जगे तो सबकुछ देदो
इक वायदा भी वर्ना क्यूँ?

अपनी चुनरी पगड़ी है तो
किसीका पटका, परना क्यूँ?

रूह की है तो सच्ची ही है
खुलके बोलो, डरना क्यूँ?

सागर नाखुश करके बेबस
यूँ ही डूबना, तरना क्यूँ?

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4 JUN 2022 AT 9:29

खुदी को ढूंढने फिर फिर
जन्म लेता हूँ दुनिया में,
तुझे पहली दफा तक के
यहीं पर खो गया था मै!

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4 JUN 2022 AT 7:47

👍Earning by hardwork is always
great. Because it's natural.
👍More earning with less working
is also good. Because it's the base
of whole skills and innovations.
👍Earning without work anyhow
may be good. We still need better.

👎 BAD is, when we target to earn
the right of someone else.

🙏 Good morninG 🙏

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3 JUN 2022 AT 21:34

जलाए जा, मेरी सोने की टिकिया और निखरेगी!
भुला भी दे जमाने को मेरी उलफत न बिसरेगी!!

कहीं भी घर बना ले तू कहीं भी जाके छिप जाना,
मेरे गीतों की हर चिड़िया तेरे आंगन में उतरेगी!

कहाँ बंजर में लेकर फिर रही है बीज तू अपने,
मेरे खेतों में ही आकर तेरी हर पोध निसरेगी!

कहाँ तक तू दबाएगी मेरी चाहत को सीने में,
मेरी चाहत तो सूरज की तरह है रोज उभरेगी!

तू भागी फिर रही मैं ज़र्रा ज़र्रा तुझमें यूँ फैला
अगर पल्लू भी झटकेगी मेरी खुशबू ही बिखरेगी!

तबीयत यूँ कभी मेरी न भटकी है न भटकेगी!
मगर तो क्या करूँ जो ये तेरी आँखों में खटकेगी

तू आके इस तरफ बरसा ज़रा अपनी बदरिया को,
कलम बेबस की है दरिया सरीखी ये न अटकेगी !

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