सुना है दिल की बात अगर दिलबर से बता दो तो वो कदर करनी छोड़ देता है पता चला अगर उसे आपकी मोहोब्बत के बारे में तो फिर आप मरो या जियो वो फ़िक्र करना छोड़ देता है
अपना दायर थोड़ा बढ़ा ज़िन्दगी, अब नये ग़मो को जगाह नही बची झूठा ही मुस्कुराने दे यार बाकी खुश रहने की कोई वजाह नही बची क्या ही गिला करूँ अब तुझसे तू सिखाती बोहोत अच्छा है ज़िंदगी तू हँसने नही देती मगर रुलाती बोहोत अच्छा है
आखिर क्यों ज़रूरी है बदलना, मोहोब्बत को भुलाना भी ज़रूरी क्यो है जब एक तरफ़ा इश्क़ एक पर ही निरभर है फिर भी ये मोहोब्बत अधूरी क्यों है लाज़मी है तुम्हारा इनकार करना फिर हमारी परवाह तुम्हारी मजबूरी क्यों है मैं हूँ ही नही तेरी ज़िंदगी में तो फिर मेरी मौजूदगी वहाँ ज़रूरी क्यो हैं ज़रा बताओगे यूँ हर पल इस कदर नक़ाब बदलना ज़रूरी क्यों है
इश्क़ तुझसे करूँ या मौत के लिए फ़ना हो जाऊं आबाद रहूँ तेरी गली में या छोड़ कर इन्हें तबाह हो जाऊं छोड़ दूं ये इश्क़ मोहोब्बत छोड़ दूं तुझे याद करना छोड़ दूं मैं सांस लेना इस ज़माने की धूल में मैं हवा हो जाऊं
ख़ैरियत पूछूं तुम्हारी या इश्क़ से नफरत करूँ कोसता रहूँ खुद को या फिर तुझसे मोहोब्बत करूँ तलाशना है ख़ुद को मुझे बस तेरी इजाज़त मिल जाये क्यों ना तेरी आँखों के दरमियां मरने की हिमाक़त की जाए