Be it religious, political, regional, familial conflicts
You are the spoils of their war
Young or old - you are fair game
Because groping, raping, treating you as sex slaves
Are considered as “rights” by monstrous men
While you as a woman has the “duty”
To carry the burden of blame and shame
Whether you are at home, at work, in your country or abroad
Walking on the road or lying in your grave
There’s no place in this world where you can claim to be safe
Because it doesn’t matter what you did or didn’t do
Those beasts will still come for you
They will justify their acts and blame you for it all
And the world will ask you to prove why it isn’t your fault?
For they know they will get away with it
Like they have for centuries before
While you will be left to pick up the pieces
Of your ravaged body and crushed soul
Because “boys will be boys”
And “every rapist has a future” you see
It doesn’t matter whether you’re an infant, a girl or a woman
In the eyes of the boys and the men
Who are your judge and jury
You belong to the ‘weaker’ sex
Thus, You’re Guilty!
- Seema Sandeep Tiwari -
-
तुम्हारा पहनावा तुम्हारी उम्र तुम्हारा देश
तुम्हारा मज़हब तुम्हारी पार्टी तुम्हारा परिवेश
तुम्हारा रसूक तुम्हारे ख़यालात कुछ भी मायने नहीं रखता
तुम कहाँ रहती हो इससे तुम्हारे हश्र का कोई वास्ता ही नहीं है
तुम घर में हो या ऑफिस में या सड़क पर या शमशान में
हवस की बलि चढ़ने से बचने का कहीं कोई रास्ता ही नहीं है
तुम क्या सोचती हो, चाहती हो, समझती हो, मानती हो, जानती हो
कुछ भी तो ज़रूरी नहीं
तुम बच्ची हो, लड़की हो, औरत हो
दरिंदों की गंदी निगाहों में बस तुम्हारा यही क़सूर काफ़ी है
बाक़ी रहा सवाल तुम्हारे क़ातिलों और बलात्कारियों का
तो उनके लिए तो दुनिया में हर जगह माफ़ी है
“कच्ची उम्र में लड़कों से ग़लतियाँ हो जाती हैं”
भूल से सज़ा उन्हें मिल भी गई
तो हाथ में सिलाई की मशीन थमा रिहाई मिल जाती है
ताकि ज़माना होंठ सी ले अपने और फिर साँसें थामें इंतज़ार करे
कि फिर कब कोई निर्भया कोई मौमिता फिर इनकी शिकार बने
- सीमा संदीप तिवारी -
-
कहते हैं वक़्त हर ज़ख्म भर देता है
पर उन ज़ख्मों का क्या जो वक़्त ख़ुद ही देता है
कैसे इस ज़ालिम को अपना हकीम मैं मान लूँ
जो भरने के नाम पे हर ज़ख्म कुरेद देता है
- सीमा संदीप तिवारी -
Kehte Hain Waqt Har Zakhm Bhar Deta Hai
Par Un Zakhmon Ka Kya Jo Waqt Khud Hi Deta Hai
Kaise Is Zaalim Ko Apna Hakeem Main Maan Loon
Jo Bharne Ke Naam Pe Har Zakhm Kured Deta Hai
- Seema Sandeep Tiwari --
अपनों के हँसी-ख़ुशी-बातों के शोरगुल से लौट
परदेस का सन्नाटा बहुत कचोटता है
फिर दिन बीतते हैं
और खामोशी की आदत पद जाती है
जैसे गुलाब को काँटों में महकने की आदत हो जाती है
- सीमा संदीप तिवारी -
-
यूँ लगी गले मुझसे
कि भिगो गई मेरा आँचल
मानो बरसों बाद दो बहनें
मायके में मिल रही हैं
मुंबई की बारिश और मेरा
कुछ ऐसा ही है नाता
न उसके आँसू थम रहे हैं
न मेरी बातें थम रही हैं
- सीमा संदीप तिवारी --
I am happy to help you with my heart ❤️ but I’m sure you are safe
-
रंग, घोंसले, फल, फूल सब किरायेदार
एक एक कर सब साथ छोड़ गये
अब सिर्फ़ स्मृतियाँ झूलती हैं उस बूढ़े पेड़ से
जो बाँहें पसारे आज भी रोज़ की तरह
कड़कती धूप में ख़ुद सिककर
आते जाते हर जाने अनजाने को
छाँव देता है, प्यार देता है, आशीर्वाद देता है
फिर चाहे कोई उसे नमस्कार करे या उसका तिरस्कार
- सीमा संदीप तिवारी --
किताबों में सूखे फूल, पन्नों पे लिखी नज़्म
अपनों के बीच ज़िक्र, मेज़ पे बिखरी पुरानी तस्वीरें
और कुछ पुराने ख़त
जिन में अमर हैं कुछ गिले
और कई शिकवे
तुम्हारी यादें बाँट आया हूँ थोड़ा थोड़ा सब में
तुमने तो साथ पहले ही छोड़ दिया
अब ये कमबख़्त याददाश्त भी मेरा साथ छोड़ रही है
मेरे जीने का सहारा तो कल भी तुम्हारी यादें थीं
और आज भी हैं
पर अगर कल तुमसे रूबरू होना चाहूँ
और न चाहकर भी रास्ता भटक जाऊँ
तब तुम्हारी यही छोटी छोटी निशानियाँ
मुझे फिर एक बार तुम तक पहुँचा देंगी
मैं बिखरा बिखरा सा लौटूँगा
और तुम मुझे समेट लेना
हमेशा की तरह
ख़ुद को भूल जाना मंज़ूर है मुझे
पर तुम्हें भूलना
ये कतई गवारा नहीं
- सीमा संदीप तिवारी --
माँ से काम करने को कहो कभी
तो उनकी बातों में
न तो “आराम” जैसे शब्दों का उल्लेख मिलेगा
न ही आराम करने का एक भी उन्हें बहाना याद आएगा
पर माँ से एक बार आराम करने को कह दो
तो उन्हें सौ काम याद आ जाएँगे
माँ के काम का न ओर होता है न छोर
और उस पर हम परिवार के लोग
माँ से न केवल छोटे बड़े काम कराते हैं
बल्कि घर के छोटे-बड़े कामों में माँ का हाथ भी नही बटाते हैं
अपने इस व्यवहार से
हम केवल कामचोर ही नहीं बन जाते
बल्कि माँ के आरामचोर भी बन जाते हैं
जितना हो सके उतना माँ का हाथ बटाओ
वो भी बिना उसके कहे या किसी “ख़ास” दिन का इंतज़ार किए
क्या पता जो अपने हाथों से तुम्हारा जीवन सँवारती है
शायद तुम्हारे हाथ बटाने से
उसके जीवन में भी
दो पल का ही सही पर आराम आ जाये
- सीमा संदीप तिवारी-
जो आज है जाने वो कब कल बन जाये
जो समक्ष दिख रहा
जाने कब आँखों से ओझल हो जाये
अपने रिश्तों को अपनी कामयाबी पे मत कर न्यौछावर
तेरी मज़बूत बंद मुट्ठी को ठेंगा दिखा
जाने कब वक़्त की रेत
हाथों से फिसल जाये
- सीमा संदीप तिवारी --