बातें जो कहनी पड़े
ऐसे रिश्ते क्यों तकते रहे
सुनना जो चाहे वो
क्यों महीनों तरसते रहे
तो अब
कुछ नहीं कहना है मुझको-
लगे जो जिंदगी
बोझिल और बर्दाश्त के बाहर
जीना न छोड़िए जनाब
बस थोड़ी हिम्मत जुटाइए और
हमसफर बदलिए-
रीढ़ की हड्डी सीधी रहना न भूल जाएं
इसलिए
सब्र की हद सीमित और छोटी जरूरी-
डूबने का दोष ...समंदर को
इतने नासमझ तो... नहीं है आप जनाब
घर... जब बनाया किनारे पर
तैरना न सीखना ...आलस नहीं तो और क्या है यार-
परिस्थितियों के बदलने का... इंतजार
अपनेआप भी कभी होता है... यार
कुछ न कुछ स्वार्थ तो... निहित रहता ही है अपना भी
जो निकलते नहीं ऐसी स्थिति से... खुद जनाब-
हर रिश्ता एक बेड़ी है कामकाजी महिला के पांव में
आडा तिरछा हो जरा, बैठे सब इस मौके के इंतजार में
आजादी की सांसों की कीमत, पूछे कोई इनसे
मान भी कम सम्मान भी कम, पिसती रहती खुद से
अपनी सांसों की डोर ,जो हो खुद थामन की चाह
बड़ी सी कीमत देनी पड़ती , हैं न मेरे यार-
Good morning
किसी अपने की...
खूबसूरत मुस्कुराते चेहरे की याद...
पूरे दिन को ...खुशनुमा बनाने को काफी है यार..
उनमें से आप भी ...एक हैं सरकार...-