पतंग नहीं परिंदे हैं हम ,डोर से न हमें बांधो
आसमां है बहुत विशाल, पंखों को तो न थामो
करो भरोसा हम पर अब, करेंगे मुठ्ठी में आसमां
सेल्फी , कपड़ों के शौख से, न नियत हमारी जांचों
हमारे नोटिफिकेशन की तुन तुन से, सांसे को न अपनी थामो
बोरिंग पढ़ाकू नहीं है, अब सफलता की कुंजी
Gen z वाले दम रखते है, मान सको तो मानो
बचपना अब रहा नहीं जो कदम, बहक जाएंगे
क्या करना, कैसे करना, थोड़ा सब्र करो सबको समझाएंगे
नज़र हमेशा रहे हमी पर, ठीक भी है,
टोका टाकी बस रहने दे, उड़ सकते हैं बड़ी उड़ान, पंखों को थोड़ी खुलने दे
करे विश्वास दिलाओ, बस ये अहसास
आभार रहेगा सबका
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बचपन छोड़,बड़ों की दुनिया में मैने कदम बढ़ाया ...
बड़ों ने भी... बड़ी हो गई तू कह, इस बात पर मुहर लगाया...
...क्या करूं क्या ना करूं कि
कशमकश और आजमाइश ...
..सच में बड़ी हो गई हूं
ये बात मेरी ही समझ में क्यों नहीं ...अब तक आई...?
...कपड़े खुद ही धो कर सुखाने लगूं क्या
किचन में मम्मी के हाथ बटाने लगूं क्या ...!
...बिजली बिल, bank,tax पर
करूं क्या पापा से discuss...!
...कल से ही.. newspaper से यारी निभाऊंगी...आधे घंटे का वक्त काफी है ...
current affairs पर knowledge बढ़ाऊंगी
फिर दादा को सब बताऊंगी
उनकी गुड़िया बड़ी हो गई...उनको ये अहसास दिलाऊंगी
हाय रे....इतना सारा काम ...
इतने काम का बीड़ा.. मैं नन्हीं सी जान
भला कैसे उठाऊंगी...?
....फिर मेरे नए कपड़े, जूतों, पर्स वाले ख्वाबों पर ...कब फोकस कर पाऊंगी..?
....हैंगआउट की मस्ती, स्ट्रीट फूड वाला प्यार...
कैसे सबमें सामंजस्य बैठाऊंगी...?
उफ्फ मैं तो सोचते सोचते ही... थक गई..
चलो पहले थोड़ा आराम फरमाया जाएं..
क्या करूं कैसे करूं का मसला ,
आज रहने देते...इसे कल से सुलझाया जाएं ...-
मेरे न रहने से फ़र्क न साफ कुछ दिखता
क्या फिर ज़रूरी है
ऐसे अपनों के लिए तिल तिल कर हंसना...
...किसी के लिए खास
अब कोई अपने ...कहते नहीं वो बात
फिर क्या जरूरी है
दवाएं ले ले के सरकना....
...उम्र नहीं कुछ खास,
जिम्मेदारियां ...रह गई न कुछ खास
पैरों पर.. लगभग खड़े है सब जिंदगी में
बदलाव की न कोई खास... उनमें तड़प
क्या फिर ज़रूरी है
अपनी सांसों को जबरन.. खींचा जाएं ...
कभी ज़रूरी हो जाऊं ...
इस आस में रोज रोज पीसा जाएं ...
.. चलो अब कही ...चला जाएं ...-
क्यों चाहिए किसी का साथ
किसी में मैं ...रहूं न रहूं
मुझमें तो.. सब अपने रहते हैं न
किसी से आस को ...सांस बनाना ही क्यों
मुझमें... मेरे लिए भी तो कुछ सांस... हैं न
बस पाने की चाह ...तक ही है भारीपन
बस उसी से मुक्ति ...और अब
सब खाली सब हल्का ...हैं न-
वो ढूंढ रहे थे बहाने
साथ रह के भी दूर रहने की...
रूठ कर मैने उनकी
मुश्किलें आसान कर दी...-
मालिक बनने की ख्वाहिश.. न जगा ए दिल..
कतरनें पंखों के... समेटने में जान निकल जाती है...
सपनों की उड़ान,...
...कमज़ोर पंखों से भी तो नहीं भरी जा सकती...-
औरतें ही औरतों के किरदार निहारने लगी
....
इन मर्दों ने भी न ...
...समाज.. लोकलाज.. के नाम पर
...औरतों पर जंजीरें बड़ी का कस के बांध रखी हैं..
....
या फिर... मैं बंधन में और वो आज़ाद .. ये अहसास..
.... ख़ंजर सा चुभता होगा...-
If someone wants "family"
..then must be ready for boundaries -
...respect care and feelings
If choose a "bindass life"
and..self pleasure is the destination ...
... then must be ready for
loneliness ..-
रूठों भी तब....
मनाने वाले हो ...
रोना भी तब...
चुप करानें वाले हो
न हो कोई आस पास तो...
बिंदास जी ले यार...
कही नहीं है बही खाते... आसमानों में ...
तो... जो भर दिया है जग ने...
मन में ..
उनपे ...जरा अच्छे से...
झाड़ू फिराईए ...
और अपनी खुशियों...
अपनी संगति के लुत्फ़ उठाईए...-
सुनते रहे तुम्हारी तो.. सुलझे से ही रहे रिश्ते...
जब से थोड़ी अपनी सुनाने लगे... उलझ सा गया है सब ...-