वक्तअच्छा रहा तो
किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी
ना कुछ कहने की ना, कुछ सुनने की दरकार होगी
बस वक्त के दरमियानो की लिखी एक कहानी होगी
बीत गया जो कल,
नजरों में फिर झिलमिलाएगा
मन फिर अधबुने से ख्वाबों को निगलना चाहेगा
जुमला अल्फाजों का जो ख्वाबों में बिखरा था
वक्त उन्हें सिलवटों में छुपाना चाहेगा
बेनाम इश्क, बेनाम ही अमर हो जाएगा
ना हकीकत से रूबरू होने के मंसूबे हैं
ना ख्वाबों से जाग जाने की
वर्तमान फिर दिल पर एक दफा दस्तक दे जाएगा
ख्वाबों की अठखेलियो के बीच
समझदार वक्त दो राह दिखलाएगा
एक पर तुम्हारी ,दूजे पर मेरी शाम ढल जाएगी
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