Scribbled words   (J.ѕнιν)
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लिखता हूं बोहोत कुछ और कुछ में छुपा लेता हूं
कुछ दिल में रखकर कुछ कलम को बता देता हूं।
Joined 11 January 2018


लिखता हूं बोहोत कुछ और कुछ में छुपा लेता हूं
कुछ दिल में रखकर कुछ कलम को बता देता हूं।
Joined 11 January 2018
13 DEC 2022 AT 23:33

राह जो चुनी है सफ़र के लिऐ उसका आगाज भी तुम और मंज़िल भी तुम,
ख़्वाब जो बुनता हूँ में, उसकी आधार भी तुम और परिधि भी तुम,
मेरे हर एक संघर्ष में, जीत में, हार में, मेरी परछाई हो तुम,
मेरी हसीं की वजह भी तुम और जीने का जुनून भी तुम,
मेरी ख़ुशियों के रंग तुम्ही से और हर रंग की ख़ुशी भी तुम ,
धूप की तपिश में घर के देहरी की शीतल छाँव हो तुम,
जीवन के व्यस्त समय में , फुरसत के लम्हे भी तुम और सुकून भी तुम।

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17 AUG 2022 AT 22:55

उनसे रोज़ मुलाकात भी होती
उन्हीं हसीन शामों में बातें भी होती,

किए जो थे वादे उनसे हक़ से निभाते
अगर उनकी नज़रों में मेरी शक्सियत आम न होती,

मिलता था में रोज़ ख़्वाबों में उनसे
और वही हमारी प्यार भरी बातें भी होती,

मैंने एक अरसा गुजारा है उनकी यादों के साथ
में पुरी ज़िंदगी बिता देता
अगर उन्होंने ने कभी ख़्वाबों के अलावा मुझसे प्यार भरी बातें की होती...!

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27 MAY 2022 AT 10:57

कहीं पढ़ा था मैंने कि
हर व्यक्ति के सौ भाग्य होते हैं,
जब उन सौ भाग्य में से एक भाग्य अच्छा हो तो बेटे का जन्म होता हैं,
लेकिन
जब सौ में से सौ भाग्य अच्छे होते है तब एक बेटी का जन्म होता हैं,
इसलिए तो कहा जाता है की बेटे भाग्य से होते हैं
और बेटियां सौभाग्य से होती हैं ।


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2 MAY 2022 AT 0:01

बस यूँ ही लिखते हैं,
वजह क्या होगी...

राहत ज़रा सी,
आदत ज़रा सी ...!

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4 MAY 2020 AT 20:51

कैसे बयां करू हाल-ए-दिल मेरा
नहीं हो रहा इज़हार हमसे
लिखता हूं तुम्हे हर इक लफ़्ज़ मे
तुम समझो इन्हे करता हूं ये अर्जी तुमसे
तुम इश्क़ हो मेरा आदत नहीं
कहता हूं मे ये हक से...!

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1 DEC 2021 AT 22:04

Lagta hai aaj fir mohabbat ne kisiko behad rulaya hai...
Tabhi is bin Mausam baarish ne pura shehar bhiga kar rakha hai...

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28 NOV 2021 AT 13:14

हम मिलेंगे ज़रूर एक दिन कभी न कभी
अभी दरमियाँ है जो ये दुरी तो दुरी ही सही ,
नसीब का लिखा तो नहीं जानते ,
उम्मीद लिए बैठे है की एक मुलाक़ात होगी कहीं न कहीं
थोड़ी देर ही सही ...!

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17 NOV 2021 AT 18:10

इक अरसा गुजरा है उसका दिदार किये
फिर हर जग़ह मुझे वो क्यों नज़र आता है ,

इक वो लम्हा जो हमारे दरमियाँ था ही नहीं
आँखे बंद करने पर क्यों दिखाई देता है ,

इक पल के लिए भी ज़िक्र न हुआ उसका महफिलों मैं
न जाने फिर भी क्यों मुझे वो हर पल याद आता है ,

वो तो भूल गया होगा हमे कबका इसमें कोई शक़ नहीं
न जाने राह ए उल्फ़त का क़िस्सा हमारे हिस्से क्यों आता है...!

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23 OCT 2021 AT 23:41

शायरी के चंद लफ़्ज़ों में कभी उसकी बातें हुआ करती थी
उन्हीं मिसरों में कही उसके लिए मेरी मोहब्बत हुआ करती थी,
पर सियासत थी उसकी चाहत में यारों
हमने भी एक दिन किसी और का होके उन्हे बुरी शिकस्त दी थी...!!!

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24 SEP 2021 AT 11:31

इंसान को अभिमानी नहीं पर स्वाभिमानी ज़रूर होना चाहिए...!

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