सचिन अग्रवाल   (✍️सचिन अग्रवाल)
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Joined 25 October 2018


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Joined 25 October 2018

बस कुछ की चाहत में, बहुत कुछ खो रहे हैं...
न चाहते हुए भी बेवजह, हम बोझ ढ़ो रहे हैं...

खुदगर्जी में रोज  हम, इंसानीयत को डुबाते
बेजुबान का कर  कत्ल, हम इंसान हो रहे हैं...

हमें खबर नहीं अपनी, न ही दुनियादारी की
हमको न जगाना हम, चिरनिद्रा में सो रहे हैं...

साजिशें और साजिशें, हैं साजिशों के सहारे
फूलों की जगह अब हम, बस काँटे बो रहे हैं...

ज़हन से  हैं बेवकूफ, मगर हैं चेहरे के अच्छे
कुछ इस तरह से  हम, खूब मशहूर हो रहे हैं...

बात  समझदारी की, न समझाना  हमें कोई
बस यही कह कह के, फूट फूट कर रो रहे हैं...

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सचिन की कलम से

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नकारात्मकता मस्तिष्क का ह्रास करती है और सकारात्मकता मस्तिष्क को प्रगतिशील बनाती है....

Negativity degrades the brain and positivity makes the brain progressive ....

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ईश्वर नहीं मिलता कभी,
मंदिर मस्जिद जाने से।
ईश्वर तो मिलता है बस,
मन को मंदिर बनाने से।
लोभ द्वेष मोह कपट,
मायाजाल से घिरा मन,
मन को गर धोया नहीं,
क्या होगा गंगा नहने से।।

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कभी आओ तो, मिलो हम से भी तो यार,
दरख्त सूखते जा रहे हैं, इंतजार में तुम्हारे....

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होने दो, गर रुसवा होती है दुनिया,
हर कोई यहाँ, तुम्हारे काबिल कहाँ....

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ऐ मन! थोड़ी सच्ची सी, सियासत तो कर।
अपनी छोड़ औरों खातिर, इबादत तो कर।।

हिमायत की आस जो, औरों से रखता है,
कभी किसी की खुद भी, हिमायत तो कर।

शिकायतें तो बहुत होंगी, जमाने से तुझको,
जरा खुद की भी खुद से शिकायत तो कर।

अपने हक के लिए, सड़कें सुलगाने वाले,
पहले औरों के हक की, हिफाजत तो कर।

बेजुबानों की जान, किमती नहीं तेरे लिये,
उनके जितना खुद को, किफायत तो कर।

कुछ भी न कर सके, तो तू इतना तो कर,
इंसानियत पर थोड़ी सी, इनायत तो कर।।

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लाखों मुसीबतों के बीच, चलता चला गया।
इस दुनियादारी से मैं, यूँ लड़ता चला गया।

अपना हक ले पाना , कहाँ आसान है यहाँ,
धीरे धीरे शिखर पर, मैं चढ़ता चला गया।

करते हैं कोशिशें लोग, रास्ता भटकाने की,
अपना रास्ता खुद ही मैं, गढ़ता चला गया।

सबकी खुशी में मैं, अपनी खुशी ढूंढता हूँ,
कुछ ऐसे जीवन में, रंग भरता चला गया।

पिता से मिला था, जिंदगी जीने का हुनर,
कदमों के निशान पकड़, बढ़ता चला गया।।

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ऐ मन! थोड़ी सच्ची सी, सियासत तो कर।
अपनी छोड़ औरों खातिर, इबादत तो कर।।

हिमायत की आस जो, औरों से रखता है,
कभी किसी की खुद भी, हिमायत तो कर।

शिकायतें तो बहुत होंगी, जमाने से तुझको,
जरा खुद की भी खुद से शिकायत तो कर।

अपने हक के लिए, सड़कें सुलगाने वाले,
पहले औरों के हक की, हिफाजत तो कर।

बेजुबानों की जान, किमती नहीं तेरे लिये,
उनके जितना खुद को, किफायत तो कर।

कुछ भी न कर सके, तो तू इतना तो कर,
इंसानियत पर थोड़ी सी, इनायत तो कर।।

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भाई दूज का पावन पर्व, है बड़ा ही खास।
भाई रहे स्वस्थ सदा, यही है बहन की आस।
यमराज और यमुना , दोनों बहन और भाई।
बहन ने वचन ले कर, भाई को गुहार लगाई।
कहा, भाई एक दिन तुम, मेरे घर भी आओ।
भोजन करो मेरे घर, मुझ से तिलक कराओ।
प्राण बख्शो औरों के, मृत्यु का भय मिटाओ।
वचन की लाज बचा, पर्व को पावन बनाओ।।

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