किसी और की तस्वीर पर तेरा तसव्वुर तस्लीम नहीं कर सकता, वजूद है मेरे लफ़्ज़ों का ज़िक्र से मैं इनमे किसी और का तसव्वुर तस्लीम नहीं कर सकता, और माना के लिखूं किसी और कहा किसी और के लिए, मैं अपने अल्फाज़ों में किसी और का तसव्वुर तस्लीम नहीं कर सकता...❤️❤️
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ख़ुदकुशी सा एक सफ़र चल रहा है, घड़ी-दो घड़ी नहीं आठों पहर चल रहा है, और तुझसे मुखा़तिब हो कर कुछ कहूं तो जुर्म हो मेरा,अरे ये सब तो मेरे अन्दर चल रहा है...❤️❤️
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पहले सा दर्द है कुछ दिनों से दिल के क़रीब, मुझे डर है क्या ये वही है दिल के क़रीब, और नफ्स को भी अपना बना रहा है ये तो, रफ़्ता-रफ़्ता कौन आ रहा है दिल के क़रीब...❤️❤️
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इश्क़ की मुकम्मल तफ़सीर ही है वहशत,
वो लोग झूठे हैं जो इसे सुकून कहा करते हैं...❤️❤️-
तेरे विरह की व्याकुलता की अग्नि में, जल रहे हैं हम तेरे विछोह की अग्नि में, और बिछड़न है तो जिवित है तुझसे वियोग का जीवन मुझमे प्रियतम, वरना राख हो चुके होते हम किसी चिता की अग्नि में...❤️❤️
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तुम्हें सबसे छिपा कर रखा है, तुम एक अधूरी हकीक़त हो मेरी सो तुम्हें दिल में दबा कर रखा है, और जनता हूं के मुमकिन नहीं है तुमसे मुलाक़ात अब कभी, फ़िर भी ना जाने क्यूँ मैंने अब तक घर को सजा कर रखा है...❤️❤️
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बेज़बानी ही एक तरीका है तुझसे इज़हार-ए-मोहब्बत का, के ज़ुबां से ना खोला जाएगा मुझसे ये राज़ उल्फत का, के नहीं है ख्वाहिश तूझे छुने की ना तूझे देखने की तमन्ना है, के इश्क़ में भी लागू होता है कानून शरीअत का...❤️❤️
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काग़ज़ से सारे लफ़्ज़ छीन लिए उसने, वो शख़्स मेरे इश्क़ को वीरान कर गया...❤️❤️
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कसदन आज तेरा तसव्वुर इश्क़ से परे लग रहा है, के तुझसे मिलना किस्मत से परे लग रहा है, हां वो दिन आएगा ज़रूर अब भी के जब तूझे देखा था पहली मर्तबा, मगर तूझे हर बार देखना आँखों से परे लग रहा है...❤️❤️
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यूं जो सर-ए-आम अपने इश्क़ का ऐलान कर रहे हो, अपनी जान को क्युं हलकान कर रहे हो, और वो आयें या ना आयें ये मर्ज़ी है उनकी, भरी महफिल में उनको बदनाम क्युं कर रहे हो...❤️❤️
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