बन गयी है इक पहेली बुझना मुश्किल तुझे साथ में रहती है लेकिन ढूंढना मुश्किल तुझे उफ़ ये तेरा मुट्ठीयों से रेत सी फिसलना लम्हा- लम्हा टूटना फिर टूट कर बिखरना ज़िन्दगी क्या है तू आये ना समझना आये ना समझना
सफ़र में एक दिन ऐसा भी होगा ना कोई हमसफ़र होगा , ना कोई हमनवा होगा जो थोड़ा सा सफ़र बाक़ी बचेगा हमें तन्हा ही तय करना पड़ेगा । हमारी नेकियां, बद कारियां ही बस हमारे साथ होंगी । हमें कोई भी अन्दाज़ा नहीं है के जब मीज़ान पर इनको चढ़ाया जायेगा तो पलड़ा किस तरफ़ ज़्यादा झुकेगा ? कोई जन्नत में इतराता फिरेगा जहन्नुम में कोई जलता रहेग !!
अपनी आदत बदल रहा है वो वक़्त के साथ चल रहा है वो इश्क़ की आग ख़ुद लगाइ है और अब उसमें जल रहा है वो सारे रिश्तों को तोड़ कर देखो कफ़े अफ़सोस मल रहा है वो