किसी ने शायद चोट पहुंचाया है इसे
सुबह से मायूस होकर बैठा है ,
सूरज से मानो जैसे रिश्ता ही खत्म हो गया
कुछ इस तरह आज यह आसमान अंधेरों से ढका है ;
सड़कों पर ना तो गाड़ियों के चलने की आवाज़ है
और ना ही किसी को किसी से आगे निकलने की जल्दबाज़ी ,
आहिस्ता-आहिस्ता यूं ही बस यह दिन बीत रहा है
नवंबर कि इस बारिश ने मानो पूरे शहर को सुला दिया ;
मैं खिड़की से बाहर की तरह देख रहा हूं
कभी ठंडी हवाएं आके मेरे बदन को छू जा रही है ,
तो कभी बारिश की दो बूंदे मुझे भिगो रही है
फिर भी मैं किसी चीज की तलाश में बैठा हुआ हूं ;
सुबह से शाम हो गई यह बारिश अभी तक रुका नहीं
शायद इससे भी मेरी तरह कोई सहारा मिला नहीं ,
लगातार यह खुद कुछ ज़मीन पर दफ़न कर रही है
फिर अपनी ही कब्र पर खुद ही रो रही है ,
हाय यह " नवंबर की बारिश "
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