Sawan Singh   (Sawan Singh)
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Read a collection of many poems in my poetry book named 'sanjh' on the given link
Joined 29 October 2018


Read a collection of many poems in my poetry book named 'sanjh' on the given link
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19 DEC 2024 AT 16:42

एक नज़र में, कुछ ज़्यादा देखने की क़ाबिलियत
कुछ लफ़्ज़ों में, एक कहानी कहने की काबिलियत

हमे, बिन माँझी की नौका बना कर छोड़ेगी
तेरी, हर सच को झूठ समझने की क़ाबिलियत

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20 NOV 2024 AT 17:00

आहिस्ता से, एक कदम और आगे चलते हैं ।
बस एक कदम, उन्माद की ओर
यकीनन, ये ज़ुदा कर देगा हर रस्म से
या धकेल देगा हमे, एक उम्र पीछे |
.
एक उम्र, जहाँ मैं तुम अनजान थे
एक दूसरे के घर आते जाते वक़्त निभाते
बस एक दूसरे के, दूर के मेहमान थे ।

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12 AUG 2024 AT 17:25

कई जगहों पर गहरे से
कुछ निशान छोड़ गई थी, गाड़ी उम्र कि
जिनका रंग अब शून्य हो चला था ।
पकड़ कर हाथ तेरा मैं
भर चुका हूँ वो सभी जगह
प्रेम के गुलाबी रंग से

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26 MAY 2024 AT 0:16

कितनी रातों को ढूँढा तुझे
कितने दिन बैठी तेरे इंतज़ार में।
कब कब निहारा इन गलियों को
कितने दिन जगाया, मुझे तेरे इज़हार ने।
मेरे अंदर और बाहर का,
सारा हाल पहचानती है
.
ये खिड़की, सब जानती है ।

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2 MAY 2024 AT 12:51

वक़्त के रहते कुछ वक़्त
मिले तो बेहतर है ।
.
बस मलाल फक्त बचता है
वक़्त बीत जाने के बाद ।

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14 MAR 2024 AT 18:31

तुमसे कहने को, हज़ार बातों से भरा दिल
तुझे निहारती और,
प्रेम कि सागर से स्नेह चुनती ये आँखें ।
.
हक़ीक़त और ज़िंदगी के बीच बनी
एक दीवार के सहारे टेक लगाये खड़े हैं।




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14 MAR 2024 AT 18:19

कोई और तरक़ीब बता, ऐ क़ायदे
कुछ शब्द अलग हैं इश्क़ कि किताब में

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27 DEC 2023 AT 17:58

वक्त के ताबूत से निकले
कुछ छिले, उधड़े ख्यालों ने
.
आज के वत्सल चेहरे पर
मुस्कान उकेर कर छोड़ी है |

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18 DEC 2023 AT 10:23

शीत में ठिठुरती इन पलकों में
छुपे इस, प्रेम को देखो प्रिए
कैसे, ये सूरज की लाली
फिसल के गिरती है
तेरे चेहरे से और
मेरे होठों पर ठहर कर
एक नज़्म बन जाती है

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2 NOV 2023 AT 6:41

बदलती सी जिन्दगी में
रुका सा मुझमें मैं

दूर जाती नौका से
किनारे, निहार लेता हूं|

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