एक अल्हड़ मर बैठा है फिर एक सयानी पे
जंग लगनी है अब ताख में रखी उसकी नई जवानी पे
आग की तपिश भी होगी और बर्फ का जमना होगा
धीरे धीरे बढ़ता ही जाएगा यह रोग अब कम ना होगा
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इश्क कीजिये फिर समझिये ज़िन्दगी क्या चीज़ है...... read more
पानी का ठहराव सही है या उसका यह कल-कल बहना
मैं किसी की रचना में हूं या सब हैं मेरी रचना.....-
अच्छा सुनो ना,
इश्क़ ना सही मगर बस तुम,
बस इतनी सी खता कर लो ।।
चंद दिनों की ही बस फुरसत लेकर,
तुम खुद को मेरी बेवफ़ा कर लो ।।
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संदल की दरख्त तुम, मै जहरीला सांप हो गया हूँ
पतझड की चिंगारी तुम, मै जंगल की आग हो गया हूँ...-
कुछ रास्ते मिल गए है, कुछ एक मोड़ हैं
मगर अब ये कैसी जद्दोजहद,कैसी ये खुद से होड़ हैं
रास्ता जंचता नही, मोड़ भी अनजाने से लगते हैं
वाबस्ता घर से नही, मंजिल लापता है, सब वीराने लगते हैं
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एक कहानी चाहिए, एक किरदार चाहिए
भर गया हूँ खुद से इतना, अब कोई हिस्सेदार चाहिए-
कभी मुनासिब लफ़्ज नहीं मिलते तो कभी सारे ख्याल मर जाते है
क्या करू बयान-ए-इश्क का, जब कमबख्त ये मेरे हथियार मर जाते है-
फलक की उंचाई कितनी, दरिया कितना गहरा हैं
जमीं की बेड़िया नही टूटती, जाए कहाँ इतना पहरा हैं...-
दो सूकून की बातें होती हैं, दो गम का भी हिस्सा सुनाते है...
रोज ही हम अपनी नामुकम्मल कहानी को एक किस्सा सुनाते है..-
मुश्क़िल है पर असंभव नही
वो क्या है कि नया हूँ ना, अभी अनुभव नही...
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