सौरभ तिवारी सन्नी   (सौरभ तिवारी सन्नी)
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Joined 17 May 2019


Joined 17 May 2019

बारिश के बाद,
तार पर टंगी आख़री बूंद से पूछना

क्या होता हैँ अकेलापन...!

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जिन जख्मो से खून नहीं निकलता
समझ लेना
वो ज़ख्म किसी अपने ने ही दिया है!

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वो मुझसे से अचानक तो नहीं बिछडी
कई दिनो से थी "बेचैनी" उसे.!!

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काश कोई अपना संभाल ले मुझको,
बहुत कम बचा हूँ बिल्कुल दिसम्बर की तरह.!

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चुभता तो बहुत कुछ मुझको भी है तीर की तरह
मगर खामोश रहता हूँ, अपनी तकदीर की तरह..!!

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हम भी सीखेंगे कुछ "चाँद" से,
अकेला तो हैँ, पर चमकता बहुत हैँ..

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सजा ये है कि बंजर जमीन हूँ मैं
और
जुल्म ये है कि बारिशों से इश्क़ हो गया.!

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बरसे हुए पानी से सीखे वफाएं कोई
बादल तो अक्सर शहर बदल लेते हैं...!!

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न‌ शब ओ रोज़ ही बदले हैं, न हाल अच्छा है
किस बेरहम ने कहा था कि ये साल अच्छा हैं..!!

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ख़्वाब चुभते रहते हैं आँखों में
आंखों का रंग वैसे ही लाल थोड़ी है!

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