सौरभ तिवारी "शांडिल्य"   (पंडित सौरभ तिवारी)
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Joined 14 September 2019


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Joined 14 September 2019

जाते वक़्त
मुड़ कर
बार-बार देखना
एक अधूरे
मिलाप की
छोटी सी परिभाषा है।

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रोक कर बैठे हैं कई समंदर आँखों में,
दगाबाज़ हो सावन,
हम खुद ही बरस लेंगे..!!

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सितारों आओ मिरी राह में बिखर जाओ
ये मेरा हुक्म है हालाँकि कुछ नहीं हूँ मैं

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वजह पूछने का मौका ही नहीं मिला,
वो लहजा बदलते गए और हम अजनबी होते गए ...!

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मौत के होते हुए इंसान में इतनी अकड़ है,
जरा सोचो अगर मौत न होती तो
यह दुनिया कितनी गुरूर से भरी होती..

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सत्य सुगंध और सादगी फैलती भले धीरे-धीरे है मगर जाती बहुत दूर तक है

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ईंटें सिर पर, सपने दिल में थे,
पर दोनों का वज़न बराबर नहीं था।

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ढाई अधूरे अक्षर में सिमटी सारी कायनात।
रहने दो न समझाओ, 'प्रेम' होता है क्या जनाब।

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........ब्राह्मण......

(सतयुग से कलयुग तक)

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खो देने के बाद ही ख़याल आता है.....
कितना कीमती था (समय, व्यक्ति और संबंध )

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