saurav kumar   (सौरव)
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मदहोश/बेपरवाह/विध्वंस/बदसूरत
Joined 19 February 2018


मदहोश/बेपरवाह/विध्वंस/बदसूरत
Joined 19 February 2018
11 MAY 2018 AT 20:51

सामान बांध लिया है मैंने अब बताओ ग़ालिब..

कहा रहते है वो लोग जो कही के नही रहते।।

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1 MAY 2018 AT 1:53

उम्मीदों से बंधा एक ज़िद्दी परिंदा है इंसान

जो घायल भी उम्मीदों से है, और ज़िंदा भी

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7 APR 2018 AT 12:57

इसीलिए तो ज़माने में

अजनबी हूँ मैं

की सारे लोग फरिश्ते है,

आदमी हूँ मैं...!

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31 MAR 2018 AT 13:34

चंद रातो के ख्वाब

उम्र भर की नींद मांगते है।

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31 MAR 2018 AT 13:33

मैं भी बहुत अजीब हु इतना

अजीब हु की बस

खुद को तबाह कर लिया

और मलाल भी नही



जॉन एलिया

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31 MAR 2018 AT 13:29

Ye waqt ke Sehra me bhatkatey huey

Raahi

Manzil pe chale aaye hai manzil ke nahi

hain

John Elia

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31 MAR 2018 AT 13:25

वो गंगा किनारे की सुर्ख हवाएं जब आंखों

से टकराकर आंसू बन के गिरने लगे थे न..


बस उसी दिन हम
अपने आप से हार गए थे।

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31 MAR 2018 AT 13:21

नादान जरूर हु..। पर सोच गहरी रखता हूं..।

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14 MAR 2018 AT 16:06

तमन्ना तेरी पूरी हो

तो हो कैसे नादान ?


टूटते तारे से तूने

मांगा भी तो चाँद ।

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9 MAR 2018 AT 20:26

क्या मांगा था तुमसे....??

एक चाय...एक शाम...चंद लम्हे

और तेरी आंखे..

ज़रा इतना सा तो काबिल समझ लेते।।

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