Saurav Jha  
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Joined 9 April 2019


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Joined 9 April 2019
27 APR 2020 AT 10:36

वाराणसी

मंदिरो का शहर कहो या कहो धार्मिक राजधानी,
वाराणसी कहो बनारस या कहो शिव की नगरी काशी।

इतिहास से इस शहर का सम्बंध काफी पुराना है,
ज्ञान,शिक्षा और संस्कृति का यह बना केंद्र हमारा है।।
हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के संस्कृति का प्रतीक है,
गंगा की अविरल-निर्मल धारा,चारो ओर प्रतीत है।

यहां की चाट,चाय,रबड़ी और जलेबी की है अपनी पहचान,
गलियां संकीर्ण और तंग होके भी है अत्यंत ख़ास।।
दीपों का शहर है ये ,ज्ञान की अद्वितीय नगरी हैl
केंद्रीय विश्वविद्यालयों से शोभित अत्यंत ही रमणीय है।

अनेक ही कवि और दार्शनिक का रहा है यहां से नाता,
आज भी शास्त्रीय संगीत में बनारस घराना है गूंजाता।।
साहित्य, संगीत, ज्ञान और विज्ञानो का खान है,
सोहर,ठुमरी,बिरहा और कजरी भी इसकी जान है।

इस शहर की क्या बात करूं,जो भी यहाँ आता है,
यहीं पे खो जाता है,अपने आप को सदा यहीं के रंग में पाता है।।

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10 JAN 2020 AT 8:59

CHERISH!

All the plight,the rainy days you have seen.
Don't forget to steal a moment for the child within.

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30 NOV 2019 AT 17:06

शहरों को देखकर,
हो रहा है अंदाज़ा!

"दरिंदे" अब सिर्फ़,
जंगलों में नही रहतें।

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5 NOV 2019 AT 9:02

समकालीन परिस्थितियां

शीर्ष बदला सत्ता बदली,
पर ना ये व्यवस्था बदली।
नेता और मंत्री भी बदले,
क्यों ना ये अवस्था बदली।

नियम बदले योजना बदली,
फिर भी ना ये समस्या बदली।
भूगोल व इतिहास भी बदला,
क्यों ना ये अर्थव्यवस्था बदली?

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19 OCT 2019 AT 21:55

हाल पूछने पर "सब ठीक है" कह दिया करते हैं...

हां कुछ झूठ तो सच्चे लोग भी बोल लिया करते हैं..।

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17 OCT 2019 AT 18:51

माँ
दिन सिर्फ़ एक नहीं,है हर दिन नाम तेरे,
एक तुझसे ही मुमकिन मेरा हर एक पल हुआ है...
माँ, तुझसे ही है मेरे वजूद का "आज"....
और एक तुझसे ही तो हर एक "कल" हुआ है।

नज़र आया ना मुझे तुझसा शफीक़ और कोई,
माँ तू ठंडी छाओं है,ना तुझसा कोई सजल हुआ है।
खालिक-ए-कुल ने दुनिया का ये दीवान रचाया है, माँ की ममता सा प्यारा और ना कोई गज़ल हुआ है।

हूं वाक़िफ की तेरी ही कोई फरियाद क़ुबूल होती है,
जब जब यहां,मेरी मुश्किलों का हल हुआ है।
यूं तो तेरी याद में बहाए आसुओं का मैं ज़िक्र नहीं करता
आज बस अभी थमे हैं..... इक पल हुआ है।


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27 SEP 2019 AT 14:49


गज़ल कहेंगे

जिन्हें समझते हो आज पागल,
कभी यक़ीनन गज़ल कहेंगे।
अभी जो परवाज़ में है बादल,
अबकी सावन गज़ल कहेंगे।

कभी मनाओ तो रूठे बच्चे,
कभी हसाओ तो रोते बालक।
जो हंस पड़ेंगे ये खिलखिला के,
तो इनके बचपन गज़ल कहेंगे।

अभी मकां है,ये घर नहीं है,
है भावनाओं के बिन दीवारें।
कदम तुम्हारे अगर पड़ेंगे,
तो द्वार-आंगन गज़ल कहेंगे।

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10 SEP 2019 AT 17:32

STORY OF THE LAST PAGE

I always hope no teacher will ever look,
At the last pages of my notebook.

It's full of scribbles and doodles,
Pictures of people,houses and poodles.

Memories of knot played with friends,
And writing the scores at the end,
Which now I can comprehend.

Dates of History and valencies of Chemistry,
Every little thing we found a mystery.

The timing of the extra-class,
And all those which we wanted to grasp.

Scores of our Cricketers names,
And off-course everyone's nickname.

At last I want to confess,
The last page was really a mess.

Hey! Do give ur valuable review,
Cause it can instigate atleast a few.

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7 SEP 2019 AT 18:28

तू मायूस न हो न तू थका है न तू झुका है
तू तो बस कुछ एक पल के लिए रुका है ...

बेशक़ चाँद को छूने का ख्वाब था ,आँखे नम है
पर करोड़ो दिलो को छू लिया वो भी क्या कम है

ये चन्द किलोमीटर क्या तेरी प्रतिभा को दर्शाएंगे
तेरे बिना तो वो चाँद तारे भी अकेले नजर आएंगे

कर मेहनत लिख दे तू अब नई परिभाषा ...
अब उस चाँद को भी है तिरंगे की अभिलाषा।।🇮🇳

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12 JUN 2019 AT 12:02

कुछ शब्द और अल्फाज़,
चंद नज़्म ,चंद जज़्बात,
तेरी मेरी हर वह बात,
मैंने लिखना चाहा था।

हवाओं का वो बहार,
बारिश की हर फ़ुहार,
दीवाली-होली का त्योहार,
मैंने लिखना चाहा था।

अनकहीं सी सारी बात,
कहीं दबे-छुपे सारे हालात,
शब्द जिनसे ना हो आघात,
मैंने लिखना चाहा था।
-सौरव झा।





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