मैं जानता हूं अपनी पहचान , तुम ना बताओ तो अच्छा है
तुम कहते हो मक्कार हूं मैं , तो तुम ही बता दो यहां कौन सच्चा है
~सौरभ उपाध्याय "कुनाल"-
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क्रोध से भी घातक शस्त्र है ।
शंका..
जो मनुष्य के आत्मबल और आत्ममंथन
दोनों का विनाश कर देती है
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~सौरभ उपाध्याय "कुनाल"
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ज़िंदगी की एक नई शुरुआत की थी
जब मैंने पहली बार तुमसे बात की थी
मृगनयन सी आँखों मे तेरे झील सा पानी था
तृषा मुझमे भी थी ,ओ दौर जवानी था
क्षुधा न थी देह की बस रूह का अनुराग था
संगीत का ज्ञान नही, पर तेरी हर बात मे जैसे कोई राग था
~सौरभ उपाध्याय "कुनाल"-
कोई खुद को मजबूर कहता है
तो कोई खुद का ही कसूर कहता है
जरा संभाल कर रखना तुम भी
अपने कदम उसकी गली में
सुना है,हर बेवफा उसे अपना हुजूर कहता है-
क्या पुरुष का चरित्र सच मे इतना धूमिल हो गया है ?
कि हम हर प्रकार के नारीवाद का समर्थन करें
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इश्क़ हुआ था ये गुनाह नही था
हाँ तुमसे हुआ था ये गुनाह जरूर था
~सौरभ उपाध्याय "कुनाल"-
नींद से रिश्ता टूट रहा है
और
रातों से दोस्ती हो रही है
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नज़र बदलना तो हमें किताबों ने सीखा दिया
पर
लोगों का नज़रिया बदलना अब भी कठिन कार्य है-
ओ मेरा नाम तक नही जानती
और
मैं मोहल्ले भर में
उसके नाम से बदनाम हूं
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