Happiest are those who don't give a fuck
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गड़े खंजर बहुत थे मेरी पीठ पर मगर,
आपने सीने में घोंपा, आपका शुक्रिया!
आदत भी तो ऐसी बिगड़ी थी हमारी,
गम को आगोश में लिया, खुशी को तख़्लिया।
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ये कांच पिघलकर पत्थर हो चुका,
टूट–टूट के थक जो गया था मैं.
मंजिल का इशारा था ठहर जाने का,
पर इससे ज्यादा रुक न सका था मैं.
मिले खरीददार बहुत सरे बाजार मुझे,
इस रूह के साथ बिक न सका था मैं.
कफन सिला था आपने भी आला मगर,
आपकी उम्मीद पर नप न सका था मैं।-
जब अवयक्तता ही हो भाषा,
जब एकांगता ही हो प्राथमिकता,
जब प्रेम उठ जाए स्पर्श और शब्दों से परे...
कुछ लगता नही अपना,
कोई डर नहीं खोने का,
न मृत्यु की प्रतीक्षा,
न जीने की आकांक्षा,
जीवन है मात्र,
जीने की औपचारिकता...
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यूं तो गुजार दी है गुजारे बगैर भी,
क्या खाक जिंदगी है तुम्हारे बगैर भी !
लंगड़े ही चल पड़े हम सहारे बगैर ही,
लाठी भी तोड़ दी थी हमने मारे बगैर ही!
गुलशन तुम्हारी महफिल हमारे बगैर भी,
फिर खोजते हो क्या तुम है खुदा का तो खैर ही!
- सौरभ त्यागी "मुर्शिद" م
YourQuote.in-
मान लिया उनको साकी,
गम में देख लिया जाम,
जिंदगी हमारी यूं ही,
मयकशी में हुई तमाम!-
दिल नहीं लगता इस दयार में अब,
आह भी सर्द है इस बयार में अब!
दयार – इलाका
बयार– हवा-
हम किस गली में भटकें अब,
हम किस कूचे में दिल जलाएं,
मुर्शिद सुकूं घर में बहुत है,
खुदाया यहीं जिएं, यहीं मर जाएं.-