Saurabh Tyagi   (सौरभ त्यागी "मुर्शिद" مر)
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नज़्मों का आशिक़, उर्दू को देवनागरी में लिखता हूँ
Joined 21 December 2017


नज़्मों का आशिक़, उर्दू को देवनागरी में लिखता हूँ
Joined 21 December 2017
10 JUN 2024 AT 23:46

Happiest are those who don't give a fuck

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15 MAY 2024 AT 0:16

गड़े खंजर बहुत थे मेरी पीठ पर मगर,
आपने सीने में घोंपा, आपका शुक्रिया!

आदत भी तो ऐसी बिगड़ी थी हमारी,
गम को आगोश में लिया, खुशी को तख़्लिया।

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11 APR 2024 AT 18:24

ये कांच पिघलकर पत्थर हो चुका,
टूट–टूट के थक जो गया था मैं.

मंजिल का इशारा था ठहर जाने का,
पर इससे ज्यादा रुक न सका था मैं.

मिले खरीददार बहुत सरे बाजार मुझे,
इस रूह के साथ बिक न सका था मैं.

कफन सिला था आपने भी आला मगर,
आपकी उम्मीद पर नप न सका था मैं।

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31 MAR 2024 AT 0:03

जब अवयक्तता ही हो भाषा,
जब एकांगता ही हो प्राथमिकता,
जब प्रेम उठ जाए स्पर्श और शब्दों से परे...
कुछ लगता नही अपना,
कोई डर नहीं खोने का,

न मृत्यु की प्रतीक्षा,
न जीने की आकांक्षा,
जीवन है मात्र,
जीने की औपचारिकता...

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28 DEC 2023 AT 0:53

यूं तो गुजार दी है गुजारे बगैर भी,
क्या खाक जिंदगी है तुम्हारे बगैर भी !

लंगड़े ही चल पड़े हम सहारे बगैर ही,
लाठी भी तोड़ दी थी हमने मारे बगैर ही!

गुलशन तुम्हारी महफिल हमारे बगैर भी,
फिर खोजते हो क्या तुम है खुदा का तो खैर ही!

- सौरभ त्यागी "मुर्शिद" م

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2 JAN 2023 AT 9:38

अर्ज किया है,

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2 JAN 2023 AT 9:33

मान लिया उनको साकी,
गम में देख लिया जाम,
जिंदगी हमारी यूं ही,
मयकशी में हुई तमाम!

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18 DEC 2022 AT 6:40

शराब से दोस्ती और रंज से यारी,
जिंदगी अपनी हमने कुछ ऐसे गुजारी!

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8 DEC 2022 AT 20:57

दिल नहीं लगता इस दयार में अब,
आह भी सर्द है इस बयार में अब!

दयार – इलाका
बयार– हवा

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30 OCT 2022 AT 15:34

हम किस गली में भटकें अब,
हम किस कूचे में दिल जलाएं,
मुर्शिद सुकूं घर में बहुत है,
खुदाया यहीं जिएं, यहीं मर जाएं.

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