Saurabh Tiwary   (सौरभ तिवारी)
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पूर्व संगणक अभियंत
लेखक
"माँ, महादेव, महबूब "
Joined 7 September 2017


पूर्व संगणक अभियंत
लेखक
"माँ, महादेव, महबूब "
Joined 7 September 2017
3 JUL 2023 AT 20:02

और फ़िर समाज की बनाई रणनीति और आडंबर
खा गए अंदर के उस कलाकर को
जो यूं ही लिख दिया था करता था बेचैनी के किस्से..
अब शब्द नही फूटते एक फूल को देखकर,
अब कलम दम तोड देती है एक मुस्कुराता चेहरा देख कर
और स्याही पी गई वो सारे शब्द जो चीख कर मुझे सबको सुनाने थे..
गुलज़ार साहब ने कहा है..
"बेचैन रहते हैं वो लोग जिन्हें सब याद रहता है"

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31 MAY 2023 AT 21:18

और फ़िर पितृसत्तात्मकता नाम के बड़े पेड़ पर लगी चींटियां मेरे कंधो पर कई बार यूं ही आ गिरती हैं। मैं कितनी ही कोशिश कर लूं पर अंत तक एक चींटी मुझे काट लेती है। इसकी टीस बहुत दिनों तक मेरे मन में गूंजती है। मैं इस टीस को इंद्रधनुष में बदल देना चाहता हूं पर जब जब तक मैं इसका रंग सोच पाऊं मैं शुन्य से मौन का सफर कई बार तय कर चुका होता हूं।

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17 APR 2023 AT 1:22

अपनी पसंद का गूलर का फुल राहगीर पीछे ही छोड़ आया,
अब रास्ते में खड़े हैं कई गुलाब हाथ में लिए।।

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11 MAR 2023 AT 10:44

मुझसे जब भी कोई पूछता है की ये वाली लाइन किसके लिए लिखी या फिर वो वाली तो मैं कला है, साहित्य है या ख्याल है सिर्फ, कह देता हूँ। लेकिन मैं जानता हूँ की ये किसके लिए है। मेरी दुविधा ये है की मैं नहीं जानता की मेरे शरीर में "मैं" कहाँ है ताकि मैं पूछ पाऊं की सौरभ तूने किसके लिए लिखी है ये ? कभी कभी रात को जब नींद नहीं आती और मैं अपनी बालकनी में खड़ा होकर चाँद देखता हूँ तब लगता की मेरा "मैं" मेरी रीढ़ में है और मुझसे ज्यादा बात करना पसंद नहीं उसे। कभी बात हुई तो पूछूंगा ऐसे छुप कर क्यों रहते हो ? आमने सामने की बात करो। अच्छा बताओ जब उसने पूछा की मेरे बारे में क्या सोचते हो तो कह क्यों नहीं पाए? क्या ? वही जो सच है।

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11 MAR 2023 AT 0:46

मैं बहुत झूठा और फरेब इंसान हूँ। मैं हर रोज उठते ही " अच्छा और ईमानदार" नाम के कपड़े पहन लेता हूँ। हसीं के जूते पैरो में डाल कर निकल जाता हूँ । फिर जो मिलता है मेरे कपड़ो की तारीफ करता है। पर असल में मैं हारा हुआ और मक्कार शख्श हूँ। मैंने आज तक कुछ नहीं जीता। मैं रास्ते में चलते रोड पर भीख़ मांगते देखा गया हूँ, पर उसमे भी हारा हूँ। मैंने इतने साल एक ढोंग रचा है। खुद के लिए खुद से छुपा कर।
मेरे हाथ में रेत है और रेत में मरकरी। हाथ में कुछ नहीं रुकता। बस मरकरी की तासीर और भीख में मिले दो गुड़हल के फूल।
यह कह कर उसने अपनी सिगरेट जलाई और धुएं में उसका चहरा मैं देख नहीं पाया।।

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9 MAR 2023 AT 22:34

एक अपना सा शख्स पराए शहर में रहता है
उस से कभी मिला नहीं, तो आंखों में कैसे रहता है
यायावर सी उसकी बातें, उसका लहजा उसका मन
अय्यार है वो सबका, मुझसे खामोश ही अक्सर रहता है।

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21 FEB 2023 AT 19:31

ढलती शाम को एक कोने में उजाले को सिमटा दिया गया
आसमां से परिंदो का पहरा हटा दिया गया
छोटे छोटे किरदार रहे मेरे कई कहानियों में,
फिर पुराना होता गया और मिटा दिया गया।।

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14 FEB 2023 AT 3:53

तुम्हारे बाद मैने जिन्हें चाहा..
जैसे कोरे कागज, नकली खिलौने, बुत, स्याह मुस्कान, लाल मिट्टी, सुखी नदियां.!

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21 JAN 2023 AT 20:21

एक सपना है, सपने में भंवर,
भंवरों में यूं झुलाता है मुझे,
एक शहर है तेरा,
जो आहिस्ते से रोज बुलाता है मुझे।।

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13 JAN 2023 AT 17:23

शहर भर में पागल से घूम रहें हैं आशिक तेरे,
तू आंचल लहरा कर इन्हे शांत कर...
की, मिट गए कुछ खाक में तेरे दीदार को
तू कुछ को बचा ले..फलक से नीचे आ, उनसे बात कर।।

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