मैं नहीं चाहता की
इसी दर्द से मुझे "और" मारा जाएं।
ये अगर नशा है,
तो किसी तरह इसे "उतारा" जाए।
वो सख्श और था
जिसे प्रेम में मर जाना था,
मैं जीना चाहता हु,
मुझे किसी हुनर से "संवारा" जाए।-
Saurabh Singh
(Saurabh Singh)
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Blogger। Reclusive
Joined 7 May 2018
15 JAN 2022 AT 21:27
27 AUG 2021 AT 18:23
"आशा' और 'प्रतीक्षा' बस शाब्दिक प्रतीक है
पीड़ा तो उन दैनिक जीवन की आदतों में है जिनमें किसी की छाप रह जाती है।-
27 AUG 2021 AT 18:11
When we should talk about global warming, we are talking about Taliban
We did it! Joe!-
6 JUN 2021 AT 7:41
किसके लिए जागे रात भर
क्यों अपनी नींद खराब करे
कौन है जिसे हम याद करे
किसके लिए ये शाम हम ख़ाक करे
क्यों जीएं इस उधेड़ बुन में
क्यों गैर के लिए दफ़न जज़्बात करे
किसे रौशनी की परवाह है यहां
की खुद को जलाकर राख करे-
3 JUN 2021 AT 7:48
जख्मों से लबरेज़ है
मिरे मुहब्बत की संदूक
अब और गमों का
तलबगार नही मिरा दिल-
30 MAY 2021 AT 8:46
बारिशों के बाद
टहनियों पर अटकी बूंद हो तुम
और मैं सूखे रेगिस्तान से आया
खानाबदोस मुसाफिर-
27 MAY 2021 AT 13:25
हम कहां तक रहते सफ़र के होकर
इक पड़ाव पर आदमी थक ही जाता है
कब तलक बर्दास्त करते हम भी भला
जब आग में घी पड़े तो भड़क ही जाता है-