चंद्रमा के जैसी तुम, मैं चाँदनी का विस्तार करूँ
इस जन्मदिवस पर प्रिये तुम्हे, भेंट मे क्या उपहार करूँ
चमचम जैसे मृदु अधरों पर, मनहरण कोई छंद रचूं
जो लगा केश पर मोगरा, क्या उसकी मैं सुगंध लिखूं
गर ये भी मैं न कर सकूँ, फिर तुम पर क्यों अधिकार करूँ
इस जन्मदिवस पर प्रिये तुम्हे, भेंट में क्या उपहार करूँ
नीरज के गीतों के जैसे, तुम पर कोई गीत कहूँ
हार गया है तन मन मेरा, मैं बस तुम्हारी जीत कहूँ
आभूषण तो मैं दे न सका, बस शब्दो को अलंकार करूँ
इस जन्मदिवस पर प्रिये तुम्हे, भेंट में क्या उपहार करूँ
शुचि जल से हैं भीगे नयना, अश्रु मोती मैं भेंट करूँ
कर धर कर तेरे कर में, मन अपना तुमको भेंट करूँ
गर ये भी मैं न कर सका, फिर तुम पर क्यों अधिकार करूँ
इस जन्मदिवस पर प्रिये तुम्हे, भेंट में क्या उपहार करूँ
इस जन्मदिवस पर प्रिये तुम्हे, भेंट में क्या उपहार करूँ
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