ग़र दाइमन सवार हो खुमार इक पलकों में ,
रहे ना आमद-ओ- शुद तेरा सालिक
फिर बेकार इन गलियों में ।-
तकरीर, इलज़ाम ,सज़ा
मिरे महबूब के जानिब से अब यही सिलसिला है ,
यहाॅ कोई भी तो खुश नहीं है मुझसे ,
मेरा होना भी एक मसअला है ।
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अब बस बेफिक्री में जीने का मन करता है,
तिरे बारे में बहुत सोंच लिया अए ज़िन्दगी।
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अजब ये महसूसियत है ,
मैं ये किस हाल में हूं,
सर्दी से बरसात होने को आई है,
मैं अब भी उसके ख़याल में हूं ।-
ऐसा नहीं है,
की तुमसे बात नहीं करना मुझे,
बस अपने जज़्बातों को,
अल्फ़ाज़ों के धागे में पिरो के,
सरे आम नहीं करना मुझे।-
आसुओं से लिखी थी मैंने,
तेरी मेरी कहानी,
जो आज सूख कर,
गुलाब की पंखुड़ियों पर उभर के आयी है,
कि मेरा खुद का कोई अस्तित्व नहीं,
ये महज़ तेरी परछाईं है।
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अजब सा नूर था मेरे महबूब के चेहरे पे उस दिन,
सितारे आसमान की जगह उसकी आँखों में चमक रहे थे।-
नहीं रहे वो दिन,
नहीं रहीं वो रातें,
बदले से हैं हम,
बदले हैं हालातें॥-
Your gleaming face,
radiates warmth of your light,
Which resonates with my blood,
gushes in my veins,
Stretches my lips to smile,
which reduces the thrust of distress,
Between darkness and light,
which acts as a suture,
Which symbolizes optimism
and assures a beautiful future.-
ओढ़ के सो जाता है वो, अपनी वही पुरानी फटी लुंगी,
ये मजदूर का जीवन है साहब, यहाँ लिहाफ नहीं होते.-