इश्क_ए _बनारस मे अस्सी घाट हो चला हूं मुर्दों को मोक्ष देने मणिकर्णिका शमशान हो चला हूं मोहब्बत _ऐ _दौर मे भी इश्क का सलीका ना आया मेरे मालिक देख अब मैं काशी हो चला हूं
हर मंदिर में माथा टेक आऊं हर मन्नत में तुझे मांग लाऊं इजाजत लेकर उस रब की तुम्हारे लिए खुशियां भी मांग लाऊं और एक रोज बजे मेरे दरवाजे की घंटी तुम किचन से कहो खाली हो तो देखलो या में देख आऊं
असर ना पूछिए मेरी सखी की मस्त आंखों का यहां गुरूर भरा गुलाब भी सुनहरे मैं बदल गया तुझे देखते ही मेरी मोहब्ब्त का नजरिया बदल गया एक रोज मुझे इश्क हुआ और मेरा रब बदल गया..।।
कुछ टूटे हैं ख्वाब कुछ अब भी बुन रहा हूं जो उठी रही है आवाज मुझ पर उनको भी सुन रहा हूं और बीत गया जो लम्हा याद बनकर बस उस ख्वाब के पन्ने को आज याद कर रहा हूं
चाहत हो तुम मेरे ख्वाबों की इस चाहत को जान से प्यारा बना लिया दिल को सुकून और आंखों को तारा बना लिया तुम साथ रहो या ना रहो यह तुम्हारी मर्जी है हमने तो तुम्हे अपनी ज़िंदगी का सहारा बना लिया..।। ❤️❤️❤️
सादगी से भरा चेहरा महक उठता है जरा मुस्कुराने में मासूम सा दिल है बहक जाता है जरा ज़माने में तुम हो और सिर्फ तुम ही रहोगी सच कहूं तो बरकत बोहोत है तुम संग मोहब्बत निभाने में