Saurabh Satarsh   (सतर्ष)
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आज अभी जिन्दा हूँ... कल की कल देखेंगे
Joined 18 December 2016


आज अभी जिन्दा हूँ... कल की कल देखेंगे
Joined 18 December 2016
1 JAN 2023 AT 18:55

बदली है तारीख़ और बदले कैलेंडर बस है।
हालात नही बदले, हालत भी जस की तस है।
हर पल नवल, नया दिन हर दिन ही है अपना,
शोक करूँ या स्वागत बड़ा ही असमंजस है।।



✍️सतर्ष

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24 OCT 2022 AT 0:23

दीप्त दीए से रहना हरदम
मैं तुममे बाती, नेह रहूँगा।

✍️सतर्ष

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9 APR 2022 AT 20:35

खूब लुटाऊ प्यार मैं तुमपे
जीभर तुमको प्यार करूँ।
डरता हूँ जो मैं न रहा तो!
बोलो ना क्या यार करूँ।।


©सतर्ष

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14 FEB 2022 AT 19:39

भाव विवश मन भ्रमर राग,
अनुराग में पक्के होने लगे।
ओस बिछी अधरों की छवि,
दृग देख उचक्के होने लगे।

✍️सतर्ष— % &

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13 FEB 2022 AT 20:23

दिल-सीपी का मोती कोई,
शजर के सिर पर टाँक रहा।
गुमसुम सा, नाराज़ सा वो,
पत्तों की आड़ से झाँक रहा।

✍️सतर्ष— % &

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14 FEB 2021 AT 19:13

★मुक्ता★

भोर की पहली किरण से,
पहले आकर जो जगाती।
साथ सरगम छेड़ कर जो,
मधुर  जीवन  गीत गाती।
मोगरा मन सघन वन की,
महक मादक घोल जाती।
प्रथम स्वाति बूँद पाकर,
मुक्त जल, मुक्ता बनाती।
है विविध आकार लेकिन,
साकार, एकाकार मुझमें,
मौन, एकाकी शिखर पर,
बो गई वह प्यार मुझमें।।

✍️सतर्ष

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13 DEC 2018 AT 23:44

उत्थान-पतन के मध्य
समय की
जो स्थिर रेखाएँ है।
मैं
मौन वही से देख रहा हूँ
लहरों का उठना-गिरना।


©सतर्ष

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1 JAN 2022 AT 5:57

चाँद लुटाए विमल चाँदनी,
गाए सोहर, बजे रागिनी।
खुशियों का साम्राज्य सकल है,
नव ऊर्जा, उत्साह प्रबल है।
मिटे निराशा, आश जगे फिर,
भारत का विश्वास जगे फिर।
अब तो सुप्त 'सतर्ष' जगो रे!
आया है नव वर्ष जगो रे!!
आया है नव वर्ष जगो रे!!

✍️सतर्ष

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1 JAN 2022 AT 5:46

कलकल सरिता बहती जाए,
यश की गाथा कहती जाए।
अम्बर से नित अमृत बरसे,
नहि कोऊ मेघन को तरसे।
गूँजे गीत कहाँ किस ठौर,
चलो चले 'मन' गाँव की ओर।
डूब प्रेम में,  प्रेम पगो रे!
आया है नव वर्ष जगो रे!!
आया है नव वर्ष जगो रे!!

✍️सतर्ष

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1 JAN 2022 AT 5:36

आंगन में नव पुष्प खिले है,
भ्रमर-कुसुम आ गले मिले है।
बगियन में कोयल कूक भरे,
बिरहिन की अधूरी हूक टरे।
तन-मन चंदन सा महक उठे,
खग-दल सहसा चहक उठे।
सघन शयन से सहर्ष उठो रे!
आया है नव वर्ष जगो रे!!
आया है नव वर्ष जगो रे!!

✍️सतर्ष

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