Saurabh Rana   (Pahadi Bhula Saurabh)
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Joined 31 October 2017


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Joined 31 October 2017
27 NOV 2022 AT 21:59

सूरज पर प्रतिबंध अनेकों और भरोसा रातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं हँसना झूठी बातों पर

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10 DEC 2017 AT 21:40

🙏बेचैन_कलम✒🙏

पैरों ने कहा: "चलते चलते थक गये।"
कभी न चुप रहने वाली जिह्वा (जीभ) बोल पड़ी: "तुमसे ज्यादा तो मैं चलती हूँ, पर कभी नहीं थकती"।
साँसे सिर्फ मुस्कुरा रही थी ।

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3 DEC 2017 AT 19:38

इंसान के बर्बाद होने का वक्त उसी समय से शुरू हो जाता है
जब वह दूसरों से अपनी झूठी तारीफ सुन कर खुशी महसूस करने लगता है

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2 DEC 2017 AT 18:13

कभी दुनिया को उलझाना कभी आसान हो जाना
ज़माने भर की चाहत का खुला उन्वान हो जाना
मेरी जाँ ये तुम्हारे दिल की आवारा सी हरक़त है
कभी मेहमान कर लेना कभी मेहमान हो जाना

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2 DEC 2017 AT 13:49

हिम्मत इतनी थी की समुंदर भी पार कर सकते थे
मजबूर इतने हूए की दो बूँद आँसूओ ने डूबो दिया

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1 NOV 2017 AT 14:07

तुम्हारी आँखो की तौहीन है जरा सोचो
कि उन्हें चाहने वाला शराब पीता है

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31 OCT 2017 AT 21:25

जो राष्ट्र अपने शिक्षक को सम्मान नहीं देता
इतिहास उसको स्थान नहीं देता
बिना गुरु के विश्व गुरु ?
🤔🤔🤔🤔

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31 OCT 2017 AT 15:30

चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
    स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
    मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥

पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना,
    जिसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर, धीर वीर निर्भीकमना,
जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है?
    भोगी कुसुमायुध योगी-सा, बना दृष्टिगत होता है॥

किस व्रत में है व्रती वीर यह, निद्रा का यों त्याग किये,
    राजभोग्य के योग्य विपिन में, बैठा आज विराग लिये।
बना हुआ है प्रहरी जिसका, उस कुटीर में क्या धन है,
    जिसकी रक्षा में रत इसका, तन है, मन है, जीवन है!

मर्त्यलोक-मालिन्य मेटने, स्वामि-संग जो आई है,
    तीन लोक की लक्ष्मी ने यह, कुटी आज अपनाई है।
वीर-वंश की लाज यही है, फिर क्यों वीर न हो प्रहरी,
    विजन देश है निशा शेष है, निशाचरी माया ठहरी॥

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