सिर्फ़, बातें ही क्यों याद आती हैं...
क्यों?ना जीते हर रोज बचपन,
क्यों? ये समझदारी बीच में आती है....
क्यों इतनी जल्दी बीत गया...
बचपन का वो दिन,
जब बेफिक्र दौड़ा करते थे...
ना था गिरने का डर,
गिर भी गए तो क्या हुआ...
फिर उठ झट उड़ने लगते थे,
क्यों? लदे समझदारी के बोझ के तले...
कहाँ से आया ये झूठा सा अपनापन,
क्या खूब था वो बचपन...
काश! कोई तो लौटा दे वो बचपन
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