इस जालिम दुनियां से दो टूक गुफ्तगू चाहता हूं
क्यूं बेजान सा कर दिया मुझे,
उससे प्यार करना खता था,
तो खता ही सही,
मै, फिर से उस रात की तरह ,
तेरे साथ जीना चाहता हूं।
तू एक बार हा तो कह कर देख,
तेरे साथ, एक पल में ,सातों जन्मों का एहसास चाहता हूं।।।-
" आज फिर से टूट गया "
एक अरसे पहले खुद से,
कुछ ना करने का किया था वादा!
उसे भी आज तोड़ दिया....
तारीख वही थी,
बस साल बदला था;
मोहब्बत वही था,
बस यार बदला था...
पर भूल गया था मैं,
कि, तकदीर वही थी;
बस हिसाब बदला था.....😢😢
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सिर्फ़, बातें ही क्यों याद आती हैं...
क्यों?ना जीते हर रोज बचपन,
क्यों? ये समझदारी बीच में आती है....
क्यों इतनी जल्दी बीत गया...
बचपन का वो दिन,
जब बेफिक्र दौड़ा करते थे...
ना था गिरने का डर,
गिर भी गए तो क्या हुआ...
फिर उठ झट उड़ने लगते थे,
क्यों? लदे समझदारी के बोझ के तले...
कहाँ से आया ये झूठा सा अपनापन,
क्या खूब था वो बचपन...
काश! कोई तो लौटा दे वो बचपन
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किसी से दूर हो जाने को..
और एक वजह ही काफी होती है...
किसी को हमसफर बनाने को...
उस एक वजह को(दूर हो जाने को)...
गर छोड़ दें हम...
तो वो एक वजह ही...वजह बन जाती है...
हर बिछड़े को वापिस मिलाने को...-
क्या यही इंसाफ है तेरा?.
मेरी गलती की सजा उसे देना..
और ये ..
वक़्त ने भी क्या खूब इंसाफ किया😢
मुझसे ना पूछ गैरों का कहा मान लिया....
😒😒😒😔😔😔-
दूरियाँ कितना भी करके देखा..
राज भी काम न आया..
बातें कितना भी कर के देखा....
मुक़ाम भी पा न पाया...
इंतज़ाम कितना भी करके देखा...-
कहाँ कहाँ न किये हम!
अपनी उल्फ़त-ए-बयाँ...
पर कम्बखत ये दिल भी,
पता हर बार गलत ढूँढा।-
क्या गुनाह था मेरा
कमज़र्फ तो वो थी....
तो बेवफा हम क्यों हुए..
ए जिंदगी तू ही बता....
इतनी मासूम क्यों है...
तेरी चाहत का कदर,क्यों न है...
तू उसका होकर भी..
उसका क्यों न है...
आवारगी तू ही बता...
इस दर्द का मरहम क्यों न है-
पलके झुका लेना
है अदब ये भी जता देना
हा थोड़ी नाराजगी है
लेकिन उसका भी हल है
मिला के निगाहें
हल्का सा मुस्कुरा देना😊-