बन्दीसो, सीमा, सरहदो से अलग
शिक्षा,रोजी-रोटी,कपड़ा,मकान के लिए
हर देश की आवाज
बोल रहा हूं
मैं मजदूर बोल रहा हूं
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जो धातु को आकार देता
देश को रफ्तार देता
राज्य को सरकार देता
मैं वो श्रम बोल रहा हूं
मैं मजदूर बोल रहा हूं
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पाता हूं स्वयं को खेतों में,
खलिहानो में
खानों में, कारखानों में
आवाजे जिसकी बुलन्द है,
इमारतो से सड़कों पर
बस मौन है संसद हमारी,
श्रमिकों की चीखों पर
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